सादर नमस्कार
मास का अंतिम दिन
आज सखी को आना था
वे प्रस्तुति बना रही थी
पता नही क्ये नहीं आ पाई
वे फोन लगाए थे , में सुन रही थी
सखी की थकी-थकी सी आवाज
सुबह मैं ही लग गई प्रस्तुति की जगह
अब देखें रचनाएं
प्रेम का सूरज दमकता
ज्योत्सना बन शांति छाए,
एक आभा मय सवेरा
तृप्ति की हर रात लाए !
मुक्त उर से गीत फूटे
कर्म की ज़ंजीर बिखरे,
मिले जग को प्राप्य उसका
रिक्त मन की गूंज उतरे !
रामायण को जितना पढ़ो नया सा ही लगता है
जो घटना कल घट गई वो लिखा है और शायद जो
आज घटने वाली है वो भी लिखा होना चाहिए
श्री राम भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और तुलसीदास श्री राम के अनन्य उपासक और श्री राम के चरित्र के अद्भुत गायक कवि हैं -- जिन्हें भक्तिकाल के कवियों में शीर्ष स्थान प्राप्त है | श्री रांम के जीवन का अद्भुत आख्यान ''रामचरितमानस'' न केवल श्री राम के आदर्श रूप को दिखाता है बल्कि इसमें तत्कालीन संस्कृति के विराट दर्शन होते है | मानस की प्रस्तावना में तुलसीदास जी ने खुद को निपट गंवार दर्शा कर अपनी रचनात्मकता का पूरा श्रेय अपने गुरु को दिया है
मतिअति नीच ऊँच रूचि आछी-
चहीय अमिय जग जुरै ना छौछि--
क्षमहि सज्जन मोर ढिठाई
सुनहि बाल वचन मनलाई ||
अर्थात अपने ज्ञानको बहुत छोटा बताते हुए वे कहते हैं की ''मेरी बुद्धि तो बहुत तुच्छ है और आकांक्षा बहुत बड़ी | मेरी इच्छा तो अमृत की है और संसार में छाछ भी दुर्लभ है | फिर भी सज्जन पुरुष मेरी इस ठीठता को क्षमा करते हुए मुझ बालक के वचन मन लगा कर सुनेंगे |
'अवधी ' भाषा में लिखा उनका महाकाव्य हिंदी साहित्य की अनमोल रचना है जिसमे श्री राम जी को विष्णु जी के त्रेता युगीन अवतार के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम बताया गया है | गोस्वामी जी ने कथा को सरस और सरल बनाने में कोई कसर नहीं छोडी है | भाषा में अलंकारों का चमत्कृत शैली में प्रयोग किया गया है विशेषकर 'अनुप्रास' में उनका कोई सानी नहीं है
रामायण के बारे में जितना लिक्खो शब्द कम ही पड़ेंगे
यार साहेब, कबसे आपको तलाश रही और यह भी जानती हूँ कि आप दूर कभी हुए ही नहीं...
जो भ्रम हैं, दिल के हैं, नज़र के हैं..
किसी संबंध की नींव जैसे आज़ादी वाली प्रसन्नता.. मन उड़ता हुआ किसी अजनबी के पास जा बैठे
और सुकूँ के पल जी आए, पी आए, फ़क़त और क्या चाहे कोई..
कमल की कोमल पंखुड़ियाँ और आत्मीयता की अनवरत परत, कोई कैसे रोक सके स्वयं को आपके मोहपाश में बंधने से.. आप हौंसले की मशाल और सकारात्मकता की मिसाल हैं..
जब कभी मन स्वयं से प्रश्न करे, अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए
तो आपके शब्द राह दिखाते हैं
उपमाएँ करती है सवाल
किसके लिए भरते थाल
शख़्श खास होगा, थामी.
जिसने दिल की पाल
मंज़िल का पता मालूम नहीं
दिल में कुछ आरज़ू रहने दें,
निगाहों से लेन देन किया
जाए बा लफ्ज़ गुफ़्तगू रहने दें,
हासिए से निकल कर कभी
तेरे ग़ज़ल का उन्वान तो बनूं, भीगी
पलकों के किनारे,
किनारे ख़्वाबीदा जुस्तजू रहने दें,
आज के लिए बस
सादर
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसभी प्रस्तुतियां उत्तम।
जवाब देंहटाएंजल्दबाजी में कुछ वर्तनी में ग़लती हुई है
जवाब देंहटाएंकृपया अन देखा करें
सादर नमन
सुप्रभात! जल्दबाज़ी की खूब कही, मार्च भी आज विदा हो रहा है, उसे भी शायद जाने की जल्दी थी, अब गर्मियों की लू को भला कब तक टाल सकते हैं, बेहतरीन सूत्रों का चयन, आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुणीजनों का मेरी रचना को इस अप्रतिम पटल पर स्थान देने के लिए सादर आभार..
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन ।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंउत्तम संकलन
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