आज विश्व रक्तदाता दिवस
विश्व रक्तदान दिवस हर वर्ष 14 जून को मनाया जाता है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस दिन को रक्तदान दिवस के रूप में घोषित किया गया है। वर्ष 2004 में स्थापित इस कार्यक्रम का उद्देश्य सुरक्षित रक्त रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रक्तदाताओं के सुरक्षित जीवन रक्षक रक्त के दान करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते हुए आभार व्यक्त करना है।
दाता से रक्त प्राप्त करने के दो मुख्य तरीके हैं। अपरिवर्तित रक्त के रूप में सीधे शिरा से ज्यादातर रक्त ले लिया जाता है। आम तौर पर इस रक्त को अलग भागों में, ज्यादातर लाल रक्त कोशिकाओं और प्लाज्मा में विभाजित किया जाता है, क्योंकि अधिक से अधिक प्राप्तकर्ताओं को केवल एक घटक विशेष की जरूरत होती है। अन्य तरीका दाता से रक्त लेने का है, इसमें एक अपकेंद्रित्र (सेंट्रीफ्यूज) या एक फिल्टर का उपयोग कर इसे अलग कर वांक्षित हिस्सों को संचित कर लिया जाता है और बाकी दाता को वापस दे दिया जाता है। यह प्रक्रिया अफेरेसिस (apheresis) कहलाती है और अक्सर यह काम इसके लिए विशेष रूप से तैयार मशीन के जरिए किया जाता है।
देखें कुछ रचनाएं
जेठ की तपती दुपहरी में
दहकते है पाठा के पहाड़
जानवर ढूंढते है पानी
पक्षियों को है
दाना - पानी का इंतेज़ार
नही बुझती है
प्यास धरा की
एक बार अनजाने में बाबा जी को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के नीम करौली गांव के पास ट्रेन से उतार दिए जाने के बाद काफी कोशिशों और जद्दोजहद के बावजूद रेल गाड़ी एक इंच भी चल नहीं पाई थी ! उसके बाद उनसे विनम्रता पूर्वक क्षमा याचना कर, गाड़ी में सवार करवाने के पश्चात ही वह अपनी जगह से हिली थी ! तबसे उस अलौकिक घटनास्थल के नाम पर बाबा जी को नीम करौली बाबा कहा जाने लगा.......!
उनके वितंडावाद की हवा स्वयं जनजातीय नेता अरविंद नेताम ने यह कहकर निकाल दी कि “वनवासी समाज की समस्याओं और चुनौतियों को संघ कार्यक्रम के माध्यम से रखने का सुअवसर मुझे मिला है”। उन्होंने संघ के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी की है कि “इस संगठन में चिंतन-मंथन की गहरी परंपरा है। भविष्य में जनजातीय समाज के सामने जो चुनौतियां आनेवाली हैं, उसमें आदिवासी समाज को जो संभालनेवाले और मदद करनेवाले लोग/संगठन हैं, उनमें हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मानते
एक दिन वाजपेयी जी पास के एक गाँव में किसी काम से गये हुये थे । रास्ते में उन्होंने देखा, घुरऊ चौधरी एक जुगाड़ में गोबर की खाद लेकर खेतों की ओर जा रहे हैं । वाजपेयी जी को देखते ही चौधरी ने जुगाड़ रोक कर पायलागन किया । बात होने लगी तो होते-होते वाजपेयी ने पूछ दिया – “यह जुगाड़ कहाँ से लिया?”
चौधरी ने बताया – “लिया नहीं, बनवाया है । हरीराम कहीं से एक पुराना स्कूटर लाये थे । कुछ दिन पहले ही मैंने उनसे डेढ़ हजार में लेकर मैकेनिक के यहाँ से यह जुगाड़ बनवा लिया । इंजन पुराना है पर खेती-किसानी का काम चल जाता है”।
“पुराना स्कूटर” सुनते ही वाजपेयी के कान खड़े हुये।उन्होंने फ़्लेश-बैक में खँगालना प्रारम्भ किया तो पता चला कि यह तो वही दहेज वाला स्कूटर है,जसवंतपुर वाला।वाजपेयी मुस्कराये और आगे बढ़ लिये
एक तरफ सीता ने अपने पति का साथ देने के लिए राजसी ठाठ बाट तक त्यागकर वनों की कंटीली धरती पर नंगे पैर चलना स्वीकार किया और एक सूर्पनखा थी जिसने अपनी कलुषित वासना के लिए अपने भाई रावण, कुम्भकर्ण और भाई के एक लाख पूत, सवा लाख नातियों को युद्ध की भेंट चढ़वा कर सोने की लंका नगरी को श्मशान मे तब्दील करा दिया. ऐसे मे आज की शिक्षा व्यवस्था पर यह कलंक आएगा ही आएगा कि वह हमारी बेटियों को क्या पढ़ा रही है जो भारतीय नारी के दैवीय संस्कार छीन कर उन्हें राक्षसी स्वरूप में ढाल रही है. आज यह भारतीय शिक्षा की कमियां ही हैँ जो मुस्कान और सोनम के रूप में कातिल पत्नियां उभरकर सामने आ रही हैँ और हिंदी फ़िल्म के इस गाने की पंक्ति को सत्य साबित कर रही हैँ -
"शादी से पहले करती हैँ अक्सर प्रेम कँवारियाँ,
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आज बस
सादर वंदन
दहेज का स्कूटर
जवाब देंहटाएंकोई भी वस्तु अनुपयोगी नही होती
आभार
सादर
सुंदर अंक!
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका आदरणीय जी
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