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गुरुवार, 12 जून 2025

4417...डाल पर होने की खुशी और बिछड़ने का ग़म वही जानता है जो छूट जाता है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

आइए पढ़ते हैं गुरुवारीय अंक की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

स्फुरदीप्ति

ग्रीष्म शिविर में पर्यावरण दिवस के विषय पर चित्र बनाकर रंग भरने वाली प्रतिभागिता में तुमने सभी को सहभागिता प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया? बहुत ही छोटे-छोटे अबोध विद्यार्थियों को प्रथम-द्वितीय में बाँट कर प्रतियोगिता में बढ़ने वाले द्वेष को बढ़ाने की ओर क्यों प्रेरित करना!

*****

कविता | सिसकता है प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

डाल पर होने की खुशी

और बिछड़ने का ग़म

वही जानता है

जो छूट जाता है,

वह नहीं जो छोड़ जाता है

*****

सतह के नीचे--

हम दौड़ते रहे उम्रभर
मायाविनी रात के पीछे,
अथाह गहराइयां थी
स्तम्भित धरातल
के नीचे, मुक्त
हो न सके
जकड़ता
रहा
मोह का कारागार,

*****
दिखावे से इंकार...

आम आदमी तो यूँ ही बदनाम है बेरूखी के लिए
भूखे पेट भजन कोई बाशिंदा नहीं करता
बखूबी जानता हूं असलियत सभ्य समाज की
मैं बेफिजूल किसी की निंदा नहीं करता ||

*****

सशक्त नारी-बिगड़ता समाज

केरल हाई कोर्ट के जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम. बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने पत्नी की महानता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, "एक स्त्री अपने वैवाहिक जीवन और परिवार की रक्षा के लिए क्षमा करती है और सहन करती है। यह क्षमा कोई निष्क्रिय क्रिया नहीं, बल्कि एक सक्रिय और परिवर्तनकारी कार्य है, जो भावनात्मक घावों को भरने और आंतरिक शांति प्राप्त करने का माध्यम बनता है। यह महिला की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी आंतरिक शक्ति का प्रमाण है, जिससे वह कटुता और प्रतिशोध की श्रृंखला को तोड़ती है।"

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


3 टिप्‍पणियां:

  1. डाल पर होने की खुशी
    और बिछड़ने का ग़म
    वही जानता है
    जो छूट जाता है,
    वह नहीं जो छोड़ जाता है
    सुंदर अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक 🙏 आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार और सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏

    जवाब देंहटाएं

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