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मंगलवार, 24 जून 2025

4429...इस.दौर में इंसान की तहरीर क्या कहिए

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आज विश्व में हर तरफ युद्ध, अशांति, तनाव और अस्थिरता का साया नजर आ रहा है। पहले रूस-यूक्रेन युद्ध, बाद में इजरायल और हमास के बीच युद्ध और अब इजराइल-ईरान के बीच भी युद्ध प्रारम्भ हो गया है। 

आज पूरी दुनिया मानो बारूद के ढेर पर बैठी हुई है.शायद मेरा ऐसा कहना ग़लत नहीं होगा।

क्या पिछले महाविनाशकारी युद्धों से हमने कोई सबक नहीं सीखा ?  संवेदनहीन होती इंसानियत लाशों की ढेर से तटस्थ मानवता क्या सृष्टि म़े जीवन के अंत की शुरुआत होने को है?

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आज की रचनाएँ-




प्रेम में औसत होना चुनाव नहीं था
प्रेम में उत्कृष्ट होना अनिवार्य था
प्रेम में मनुष्य वो सब बना
जो वो मूलत: नहीं था
प्रेम की हिंसा इतनी कोमल थी
कि  व्याधि लगने लगती थी उपचार।



मैं अपने फ़ोन से तस्वीरें लेता रहता हूँ। लेकिन उन तस्वीरों के लिए मेरे फ़ोन से बाहर कम ही जगह होती है। मैं सोचता हूँ कि हम जो जीवन जी रहे हैं, उसे शेयर करने का क्या लाभ है। इस जगत में प्राणी सूचना ग्राह्य हो चुके हैं। उनके लिए हर तस्वीर या दृश्य एक सूचना भर है। इन सूचनाओं की लिप्सा में अनुभूति के लिए कोई स्थान नहीं है। कि हम अल्पविराम की तरह तस्वीर को अनुभूत करें। हम सूचना की तरह तुरंत आगे न बढ़ जाएँ। बस इसलिए तस्वीरें पोस्ट करने से मन ऊबता जाता है। 





इस दौर के इंसान की तहरीर क्या कहिए
हर आँख में बाज़ार छुपा देख रहा हूँ

तन्हाई के साहिल पे खड़ा हूँ मैं अकेला
लहरों में तेरा नाम लिखा देख रहा हूँ

अख़बार में भरमार-ए-इश्तेहार छपी है
सच का लहू बहता हुआ देख रहा हूँ



उस जमाने में यदि कोई राज कवि होता था, वह महल जैसे घर में रहता था, दास-दासियों से घर भरा रहता था, लेकिन कवि कल्हण एक साधारण सी झोपड़ी में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। एक दिन दूसरे राज्यों के कुछ विद्वान उनसे मिलने और विभिन्न विषयों पर चर्चा करने आए। कल्हण ने उनका स्वागत सत्कार किया। झोपड़ी छोटी सी थी, तो उन्होंने सभी विद्वानों से झोपड़ी के बाहर बैठकर चर्चा की। 

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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम में औसत होना चुनाव नहीं था
    प्रेम में उत्कृष्ट होना अनिवार्य था
    सुंदर अंक
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए शुक्रिया!!

    जवाब देंहटाएं

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