कुछ सोच .....
कल विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस था
दुनिया में हर चीज का दिवस जरूर है और लोग अलग-लग दिवस को अलग-अलग उद्देश्य के साथ मनाते भी हैं। इन्ही दिवसों में से एक है विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस। विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस हर साल जून माह की 8 तारीख को मनाया जाता है। बताया जाता है की 8 जून को मनाये जाने वाले World Brain Tumor Day को सबसे पहले जर्मन ब्रेन ट्यूमर एसोसिएशन द्वारा मनाया गया था। हर दिवस को मनाने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य जरूर होता है और ऐसे ही ब्रेन ट्यूमर दिवस को मनाने के पीछे भी एक उद्देश्य है। इस दिवस पर विश्व के अनेक देशों में बीमारी से सम्बंधित जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। और साथ ही इस बीमारी उपचार एवं लक्षणों के बारे में भी जानकारियां दी जाती है।
देखें कुछ रचनाएं
घर के पिछवाड़े में इस रोबोट का बिस्तर लगा है, वहाँ रख दो तो पूरा चार्ज हो जाते हैं। हर दूसरे-तीसरे दिन इन्हें काम पर लगा देता हूँ। गोल-गोल घूम कर यह कमरे के कोने-कोने में जाते हैं। इनके भीतर कम्पयूटर लगा है, इनके पास घर का पूरा नक्शा है कि कहाँ क्या रखा है, सोफे और मेज़ आदि के चक्कर लगाना आता है, और यह सीढ़ियों से नीचे नहीं गिरते। ऊँचाई कम है इसलिए यह अलमारियों, बिस्तरों आदि के नीचे घुस कर सफाई कर सकते हैं। इन्हें चलाने से पहले, मैं कमरे की जो चीज़ें आसानी से हट सकती हैं, उन्हें वहाँ से हटा लेता हूँ ताकि यह खुले घूमें।
भइया जी, अभी जो सिंदूर ऑप्रेशन के बाद अल्हदा-अल्हदा पाटी का नेता लोग को ले कर जो डेलिगेशनवा देश का पच्छ रखने के लिए बाहर भेजा गया है, ऊही से एक सवाल मन में उठता है कि देश का भलाई में जब ऐसा किया जा सकता है, तो फिर अपना देश का राजनीतिक दल एकाकार हो देश की अच्छाई के लिए काम क्यों नहीं कर सकता ? वैसे भी हम सब लोग देखा ही है कि अपना हित के लिए कई राज्य में घोर विरोधी भी आपस में हाथ मिलाता रहता है ! दुनिया की भलाई को देखते हुए अलग-अलग सोच वाला लोग भी मिल कर काम करने लगता है ! तो पाटी अपनी जगह है, अपना विचार अपनी जगह है पर जब देश का बात आता है तो देश का पाटी काहे एक नहीं हो जाता है ? अगर ऐसा हो जाए तो देश का विकास अऊर तेज हो सकता है ! देश का एकता मजबूत हो सकता है ! सबसे पहले तो देशे ही है ना ?"
कुछ हवाएं चल रही हैं,
होगी अब कमज़ोर बारिश.
दिल भिगोया मिल गए हम,
या ख़ुदा चित-चोर बारिश.
जैसे धुएँ से ढकी रहती है अग्नि
और धूल से दर्पण
वैसे ही ढक जाती है चेतना
कामना के आवरण से
उजागर नहीं होने देती सत्य
अनावृत मन ही हो जाता अनंत
भण्डारे की आड़ दिख रहा अहं युक्त मन।
जब भूखा मिल जाए करा दो उसको भोजन।।
****
आज बस
सादर
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर अंक!
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए
जवाब देंहटाएं