।। प्रातःवंदन।।
"बहुत गा चुके? गीत प्रलय के जी भर-भर कर
आज सृजन की बेला, नूतन राग सुनाओ।
बरसो बन शीतल अमृतमय गीतों के घन,
धरती की छाती पर जलती आग बुझाओ।
नवयुग के नव चित्रों में नवरंग भरो कवि!
नाश नहीं मुझको नूतन निर्माण चाहिए !"
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
कुछ पल, खास रचनाओं के संग और प्रस्तुति हमारी...
उनकी सांसें आपस में घुल गयी हैं
मन भी हर क्षण जुड़ता है
और अब पकड़ इतनी मजबूत हो गयी है कि
दुनिया की बड़ी से बड़ी तलवार भी इसे काट नहीं सकती
आज सुबह चाय बना रहा था तो अचानक मन में बचपन की एक याद कौंधी।
यह बात १९६३-६४ की है। मैं और मेरी छोटी बहन, हम दोनों अपनी छोटी बुआ के पास मेरठ में गर्मियों की छुट्टियों पर गये थे। १०१ नम्बर का उनका घर साकेत में था। साथ में और सामने बहुत सी खुली जगह थी। बुआ के घर में पीछे पपीते का पेड़ लगा था और साथ वाले घर में अंगूर लगे थे। ..
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बैल की जगह खेत में काम कर रहे किसान
योग दिवस है। जो योग नहीं करते वह भी शुभकामनाएं देते है। खैर,
नियमित अभ्यास में शामिल हो तो यह वरदान है।
कल की यह तस्वीर और वीडियो आम गरीब भारतीय किसान, मजदूर के जीवन योग की संलिप्तता जी..
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हाँ
यह सुनिश्चित है
कि अंततः
अगर कुछ बचा
तो वह अवशेष ही होगा
अधूरी
या पूरी हो चुकी
बातों का
उनसे जुड़े ..
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किरन जब खिलखिलाती है तेरी तब याद आती है …
ये सिगरेट-चाय-तितली-गुफ्तगू सब याद आती है.
तेरी आग़ोश में गुज़री हुई शब याद आती है.
इसी ख़ातिर नहीं के तू ही मालिक है जगत भर का,
मुझे हर वक़्त वैसे भी तेरी रब याद आती है...
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
Wow
जवाब देंहटाएंबैल की जगह खेत में काम कर रहे किसान
युद्ध के बादल छँटे तभी तो सृजन की बात होगी, सार्थक भूमिका और पठनीय लिंक्स का संयोजन, आभार पम्मी जी!
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं
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