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शुक्रवार, 20 जून 2025

4425...तुम से तुम तक

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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बादलों की पोटली से 
टपकती बूँदों को देखकर
बंद काँच से टकराती
टिपटिपाहट मन में समेटकर
सूख चली अनगिनत स्मृतियाँ हरी हो रही है।
बचपन की बारिश आँखों में खड़ी हो रही है।
हवाओं की पाती भेजकर
भींगने संग बुलाती बारिश
फुहारें सोंधी खुशबुओं की
छींटती शीतलता लुभाती बारिश
छूकर मन, उम्र की दीवार से टकराकर,
बेआवाज़, बेरंग पानी की लड़ी हो रही है।
बचपन की बारिश आँखों में खड़ी हो रही है।
#श्वेता
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आज की रचनाएँ-

उतरा वह अनुत्तर धीरे - धीरे
सहनशीलता की गहराई में 
सागर सा विशाल विस्तार
पर्वत सी अडिग मजबूती।  

एक ठहराव सा विश्वास
कि प्रत्येक रात के पश्चात  
उगता सूरज नया प्रकाश
हर तूफ़ान के बाद शांति।  





अधिक हो धन-दौलत तो 

अभिमानी हो जाता है आदमी 

कम हो धन तो तनाव से भर जाता है 

संपन्नता भी हो और श्रम भी जीवन में 

संतोष से भर जाता है 

किंतु धन बेहिसाब हो फिर भी 

 सदा खुश नहीं रह पाता 



परछाई तेरी कब बन गयी 
कब चाहत से विश्वास में 
जीवन संगिनी से ख़ास तक 
ये सफ़र कब तै कर लिया 

धीरे - धीरे वक्त ने 
इतना सफ़र तै कर लिया 
हम साथ थे हम साथ हैं 


कभी  खोयी  हुई   उन  आवाजों  को  भी  सुनना   जो
शायद   हाईलाइटस   से   दूर  है   वे   आवाज   जिनकी
पहचान    इस   नई   चकाचौंध   में    धुँधलकी    पड़   गई   है
और    स्वर    भीतर    ही    सिमटकर    चुप    हो   गया   है
कभी   अपने   आसपास   के   शोरगुल   से   दूर    जाकर
तुम  अपने  को  उस  स्थान   पर  जानकर   किसी   दूसरे  के  
दुख -  दर्द   को   भी   शांति   से   सुनना   जैसे   माता  सुनती




बहू दीपा ऑफिस के काम में व्यस्त रहती थी तो सरिता जी ने ही उससे यह ज़िम्मेदारी ले ली थी ! अंधा क्या चाहे दो आँखें ! बहू को तो जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी थी ! उसने सुबह किचिन में आना ही बंद कर दिया ! संकोच के मारे दरवाज़ा खटखटा के बुलाना सरिता जी को उचित नहीं लगता था ! अब अगर वो टिफिन नहीं बनाएँगी तो श्रेया क्या खायेगी स्कूल में ! 





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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. वर्षगांठ करीब है ....
    धीरे - धीरे वक्त ने
    इतना सफ़र तै कर लिया
    हम साथ थे हम साथ हैं
    सुंदर लिंक संयोजन
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. बचपन की बारिश का सुंदर चित्रण किया है आपने, पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजे मंच पर 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. बचपन की बारिश बहुत सुंदर लगी... सुंदर लिंक संकलन, हमारी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार और शुभकामनाएं ढ़ेर सारी...

    जवाब देंहटाएं

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