अधिक हो धन-दौलत तो
अभिमानी हो जाता है आदमी
कम हो धन तो तनाव से भर जाता है
संपन्नता भी हो और श्रम भी जीवन में
संतोष से भर जाता है
किंतु धन बेहिसाब हो फिर भी
सदा खुश नहीं रह पाता
शायद हाईलाइटस से दूर है वे आवाज जिनकी
पहचान इस नई चकाचौंध में धुँधलकी पड़ गई है
और स्वर भीतर ही सिमटकर चुप हो गया है
कभी अपने आसपास के शोरगुल से दूर जाकर
तुम अपने को उस स्थान पर जानकर किसी दूसरे के
दुख - दर्द को भी शांति से सुनना जैसे माता सुनती
बहू दीपा ऑफिस के काम में व्यस्त रहती थी तो सरिता जी ने ही उससे यह ज़िम्मेदारी ले ली थी ! अंधा क्या चाहे दो आँखें ! बहू को तो जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी थी ! उसने सुबह किचिन में आना ही बंद कर दिया ! संकोच के मारे दरवाज़ा खटखटा के बुलाना सरिता जी को उचित नहीं लगता था ! अब अगर वो टिफिन नहीं बनाएँगी तो श्रेया क्या खायेगी स्कूल में !
वर्षगांठ करीब है ....
जवाब देंहटाएंधीरे - धीरे वक्त ने
इतना सफ़र तै कर लिया
हम साथ थे हम साथ हैं
सुंदर लिंक संयोजन
आभार
वंदन
बचपन की बारिश का सुंदर चित्रण किया है आपने, पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजे मंच पर 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंबचपन की बारिश बहुत सुंदर लगी... सुंदर लिंक संकलन, हमारी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार और शुभकामनाएं ढ़ेर सारी...
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