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मंगलवार, 17 जून 2025

4422....ज़िंदगी यही तो है

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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संसार में जन्म के साथ मिलने वाली 
धुकधुकाती साँसों से, 
जग से साँसों का नाता टूटने तक की यात्रा सृष्टि के 
प्रत्येक जीव की  ज़िंदगी है।
जितने प्रकार का देह का आवरण, उतनी विविधता, 
"जितने जीव उतनी ज़िंदगी।"


हर उम्र में ज़िंदगी का रूप-रंग
अलहदा होता है
सुख-दुख,धूप-छाँव,हर क़दम
दूसरे से जुदा होता है
बंद मुट्ठियों की चाह,पहेलियों में उलझे
 फिरते हैं उम्रभर
पर रिक्त हथेलियों से आदि और अंत
सदा होता है
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आज की रचनाएँ-
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तुम्हारे साथ 
तुम्हारे समय और तुम्हारी उस बेफक्री में जीना
जहां 
कोई पाबंदी नहीं है
तुम हो
मैं हूं
और 
हमारा समय।




अपने हिस्से की
रौशनी हर
किसी
ने समेट ली, कदाचित मैं जीवनोत्सव में कुछ
देर से आया, आलोकित पोशाक के अंदर
है आदिम काया । ज़रूरी नहीं कि
स्वर्ण प्याले से ही प्यास बुझे,
अंजुरी भर जल ही
काफ़ी है ताज़ा -
दम होने के
लिए, हार
जीत



किंतु नज़रें सदा अभाव पर 
कैसे मन की गागर भरती, 
भय से छुपे रहे गह्वर  में 
रिमझिम जब धाराएँ झरती !

निज शक्ति पर डाले पहरे 
निज आनंद की खबर नहीं थी, 
पीठ दिखाकर ज्योति पुंज को 
अंधकार की बाँह गही थी !



आँख में जब कंकड़ फसा हैं,
राख़ में शोला दबा हैं,
तमस से दीपक डरा हैं
असत्य जब सौ धर्म से बड़ा हैं
परशुराम का गांडीव उठाके
इंद्रा का सिंहासन हिला के
भागीरथी से धरा धुला के
अब मैं क्या करूँगा....



फिक्र औरों की है लाजिम
पहले अपना ख्याल रखना।।
हर कोई कतरा के चल दे
नहीं ऐसा अभिमान करना।





बच्चे के लिए उसका पिता ही सर्वश्रेष्ठ व उसका आदर्श  होता है ! पर आप तो सबसे अलग थे ! मैंने जबसे होश संभाला तब से आपको अपनी नहीं सिर्फ दूसरों की फ़िक्र और उनकी बेहतरी में ही लीन देखा ! यहां तक कि छोटी सी उम्र से ही अपने पालकों को भी पालते रहे ता-उम्र आप ! अपने भाई बहन का तो बहुत से लोग जीवन संवारते हैं, पर आपने तो उनके साथ ही माँ के परिवार को भी सहारा दिया ! वह भी बिना किसी अपेक्षा के या कोई अहसान जताए या चेहरे पर शिकन लाए ! यह जानते हुए भी कि बहुत से लोग आपका अनुचित फ़ायदा उठा रहे हैं, आप अपने कर्तव्य पूर्ती में लगे रहे ! 


--------------
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लिंक संयोजन
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम्हारे साथ
    तुम्हारे समय और तुम्हारी उस बेफक्री में जीना
    जहां
    कोई पाबंदी नहीं है
    तुम हो
    मैं हूं
    और
    हमारा समय।

    वाह
    बहुत सुंदर अंक
    🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. ज़िंदगी के विभिन्न रंगों से रूबरू करातीं सुंदर रचनाओं से सजा अंक, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत आभारी हूं आदरणीया श्वेता जी। मेरी रचना को स्थान दिया आपने इस अंक में।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!!

    जवाब देंहटाएं

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