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शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

2009 ..तुम्हारा और मेरा प्रेम समाज और घर की चौखट से बंधा है

शुक्रवारीय अंक में आप भी का
स्नेहिल अभिवादन।
----///----
उड़ते हिमकणों से
लिपटी वादियों में
कठिनाई से श्वास लेते
सुई चुभाती हवाओं में
पीठ पर मनभर भार लादे
सुस्त गति,चुस्त हिम्मत
दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ  ,
प्रकृति की निर्ममता से
जूझते 
पशु-पक्षी,पेड़-विहीन
निर्जन अपारदर्शी काँच से पहाड़ों 
के बंकरों में
गज़भर काठ की पाटियों पर
अनदेखे शत्रुओं की करते प्रतीक्षा
वीर सैनिक।

आइये अब आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

अम्मा का निजी प्रेम...ज्योति खरे 

पापा की हथेली से
फिसलकर गिर गया सूरज 
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
पूंछा क्यों ?
अम्मा ने
जमीन में पड़े पापा के सूरज को उठाकर
सिंदूर वाली बिंदी में
लपेटते हुए बोला
तुम्हारा और मेरा प्रेम
समाज और घर की चौखट से बंधा है
जो कभी मेरा नहीं रहा

कुछ नया रचना है...अपर्णा वाजपेयी


होशियार से होशियारी की
लोहार से लोहे की
पेड़ों से लकड़ी की
शिकायत नहीं करते हैं।
आंखों से पानी को
भरे घर से नानी को
बैलों से सानी को
अलग नहीं करते हैं।


स्वामी विवेकानंद...बजेन्द्रनाथ

वह योगी निर्लिप्त, निष्काम,
वह योगी समेटे करुणा तमाम।
वह सन्यास की अग्नि में
स्वयं को तपाया करते थे।
वह युवाओं में आगे बढ़ने को
विश्वास जगाया करते थे।


तब मैं गीत लिखा करता हूँ...आलोक सिन्हा

गहरी चुभन छोड़ जाती है |
मन के सरल सुकोमल तन से ,
सहन नहीं कुछ हो पाती है |
तब मैं शब्दों के मरहम से ,
मन के घाव भरा करता हूँ |

पेरवा घाघ का जल..रश्मि शर्मा

दि‍संबर के अंति‍म दि‍नों में भी। ऊपर से दि‍खा कलकल करता सफेद झरना और नीचे हरा पानी। अद्भुत दृश्‍य। ऐसे हरे रंग का झरना मैंने झारखंड में पहली बार देखा था।हम  कुछ देख बैठकर वहां की सुंदरता नि‍हारते रहे। ऊंचे-ऊंचे चट्टान से बहकर आता पानी और उस पर तैरती एक लकड़ी की नाव जि‍से दोनों ओर से रस्‍सि‍यों से बांधकर खींचा जा रहा था। पर्यटक मि‍त्र जयसि‍ंह ने बताया कि‍ यह अनूठा आइडि‍या उनका ही है जि‍ससे सैलानी पानी के नजदीक तक जा सकते हैं। दो साल पहले इस नाव का नि‍र्माण कि‍या गया था। अभी एक ही नाव है मगर पहली जनवरी से एक और नाव उतारा जा रहा है क्‍योंकि‍ अब बहुत भीड़ होने लगी है। पांच वर्ष पूर्व ग्रामीणों ने समि‍ति‍ बनाकर पेरवा घाघ को संवारने का कार्य शुरू कर दि‍या था।

आज यहीं तक
कल मिलिएगा विभा दीदी से
-श्वेता

7 टिप्‍पणियां:

  1. उड़ते हिमकणों से
    लिपटी वादियों में
    कठिनाई से श्वास लेते
    सुई चुभाती हवाओं में
    पीठ पर मनभर भार लादे
    सुस्त गति,चुस्त हिम्मत
    दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ,
    प्रकृति की निर्ममता से
    जूझते
    पशु-पक्षी,पेड़-विहीन
    निर्जन अपारदर्शी काँच से पहाड़ों
    के बंकरों में
    गज़भर काठ की पाटियों पर
    अनदेखे शत्रुओं की करते प्रतीक्षा
    वीर सैनिक।
    गज़ब की सोच आज की भूमिका में
    बेहतरीन अंक..
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. असीम शुभकामनाओं के संग साधुवाद
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  3. सैनिकों के प्रति औऱ उनके सम्मान में लिखी अद्भुत कविता के पहले आपको साधुवाद
    बहुत सुंदर लिंक संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. एक और सुंदर अंक के लिए साधुवाद ! सभी को शुभ पर्व की मंगलकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. संकलन सराहनीय है | वैसे भी रंग बिरंगी पुष्प वाटिका में आकर मन अपने आप रस विभोर हो जाता है | बहुत बहुत शुभ कनाएं , बधाई |

    जवाब देंहटाएं

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