रविवार को
लिखना हो रहा है
कल छपेगी
अच्छा दिन है रविवार
सारे के सारे
बचे-खुचे काम
सलटा लिए जाते हैं
और सलटा भी
लेना भी चाहिए
आसानी से मिलने वाला लाभ है
..
आइए चलें
साथ ...प्रतिभा कटियार
आसान नहीं होगा, माउंट एवरेस्ट से माउंट सिकदर करना ...गगन शर्मा
हम हो रहे ग़ाफ़िल ... सुबोध सिन्हा
पुरखों के कथनानुसार ही सही,
आज भी बुद्धिजीवी लोग कहते हैं कि
खरमास में शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
अब पुरखों की बात तो माननी ही होगी,
नहीं तो पाप लगेगा। ख़ैर ! ...
बुद्धिजीवियों के हुजूम के रहते
पाप-पुण्य तय करने वाले हम होते कौन हैं भला ? .. शायद ...
विपन्नता ....कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
हाहाकार मचा है भारी
नैतिकता की डोर सड़ी
उठा पटक में बापूजी की
ले भागा है चोर छड़ी
ऐसे भारत के सपने कब
बनी विवशता अभिन्नता ।।
पलायन ... शेखर सुमन
"पता नहीं...
शायद अब लिखने को कुछ बचा नहीं....
और अब मैं कुछ लिखना भी नहीं चाहता,
अनजाने लोगों के दिल के तार छेड़ने के लिए
इंसान कब तक लिख सकता है... पता है,
मेरे पास पढ़ने वालों की कभी कमी नहीं रही..
लेकिन अब शायद वक़्त आ गया है कि
ज़िन्दगी के इस परिवर्तन को स्वीकार कर लिया जाए... "
अच्छा लगता है कल पर यकीन करता देखकर
जवाब देंहटाएंसदैव स्वस्थ्य और दीर्घायु हो
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्या अग्रवाल जी,
जवाब देंहटाएंआपने लिखा है - "कल किसने देखा / पर मैं ज़रुर देखूँगी / आशावादी हूँ न" .... आपकी इस आशावादिता को नमन 🙏
यह आशा ही है जो हमें भविष्य के प्रति सकारात्मक बनाए रखते हुए हमारे वर्तमान को सहज बनाए रखती है।
बहुत शुभकामनाएं 🙏
मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
मुझे सम्मिलित कर सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर साकारात्मकता भावप्रवण प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर
बेहद सुंदर रचना संकलन
जवाब देंहटाएंवाह! भूमिका और उपसंहार दोनों ही अत्योत्तम बधाई दिव्याजी
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंको को पढ़वाने के लिए।
सभी रचनाकारों को बधाई।मेरी रचना लेने के लिए हृदय तल से आभार।
शेखर जी को टिप्पणी नहीं लिखी जा रही बहुत हृदय स्पर्शी सृजन है ।
लेखक का पलायन पूरी तरह कभी नहीं हो सकता।
सस्नेह।