शीर्षक पंक्ति: आदरणीया इंदु सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
यह बहका-बहका-सा मौसम
कभी इतना बेईमान नहीं होता,
खेतों में पानी की फ़िक्र नहीं
किसान नहीं करेगा समझौता।
-रवीन्द्र सिंह यादव
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
शरम बेच कर
मोटी खाल बेशरम
मोटी खालों के संगम के प्रबंधन का
बेमिसाल इंतजाम कर बैठा है
बैठने बिठाने के चक्कर में बैठा
कोई कहीं जा बैठा है
कोई कहीं जा बैठा है
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यात्रा के अनेक पड़ाव होते हैं
कुछ अच्छे,कुछ ठीक तो कुछ बेहद बुरे।
पड़ाव न हों तो यात्री थकान से भर जाएँगे।
पड़ाव यात्रा के चलते रहने के लिए आवश्यक हैं।
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क्या ख़ूब दोस्ती है | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह
यादों के जल रहे हैं ढेरों चिराग यूं तो
कहने को रोशनी है, नहीं है तो कुछ नहीं
मिट्टी के ख़्वाब मिट्टी में मिल गए तो क्या
इक फांस-सी लगी है, नहीं है तो कुछ नहीं
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सीली-सीली शाम ... प्रीति समकित सुराना
जब खुद को रखना होता
है बेवजह की बातों में उलझाकर,
तब ध्यान भटकना तो दूर
पल भर को भी
कोई दूसरा खयाल भी
जेहन में टिकता ही नहीं,...
*****
आँसू क्षणिकाएं... कुसुम कोठारी
रोने वाले सुन आँखों में
आँसू ना लाया कर
बस चुपचाप रोया कर
नयन पानी देख अपने भी
कतरा कर निकल जाते हैं।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन रचनाओं का संगम..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
आभार रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र यादव जी,
जवाब देंहटाएंवास्तव में प्रत्येक संकलन-संयोजन आनंद उपजाने वाला रहता है। आज का संयोजन भी - "पांच लिंकों का आनंद" - अपने नाम को सार्थकता प्रदान करने वाला है।
इन पांच लिंकों में स्वयं की पोस्ट को देखना बहुत सुखद अनुभव है।
हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं 🙏💐🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं२००१वें अंक में शामिल होना एक खास अनुभूति,भाई रविन्द्र जी सह सभी पाँचलिंक के सम्मानीय चर्चाकारों,सभी सह रचनाकारों, प्रबुद्ध पाठकों को आत्मीय बधाई एवं शुभकामनाएं।
मुझे इस अंक में स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
सादर।