2021 के जनवरी का अंतिम दिन......
कुछ बेकार लिख रहे हैं
बेगार लिखना गुनाह नहीं है
लिख ‘उलूक’ लिख
तेरे लिखने से
कुछ नहीं कर सकने वाले
लिखने लिखाने के तरीके के
कारोबार लिख रहे हैं
दुनिया से क्या लेना देना,
मन में हो सन्तोष अगर तो
काफी मुझ को चना चबेना
कोई मुर्गा भगवा बांग देने लगा
तो कोई हरी बांग देने लगा,
कोई लाल बांग देने लगा तो
कोई वंशवादी बांग देने लगा.
और तो और, कोई-कोई मुर्गा तो
दल-बदलू बांग भी देने लगा.
गाँव वाले परेशान !
किस मुर्गे की बांग सुन कर वो यह मानें कि
सूरज उग आया है
अब गले मिलना नहीं हाथ दबाना भी नहीं
बेटियों उड़ती रहो तेज परिंदो की तरह
कितनी मुश्किल हो ये रफ़्तार घटाना भी नहीं
देखे ना आगे
रोकूँ इसको कैसे...
कोई राह नहीं सूझे
धन्यवाद.
शुभ प्रभात।.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ
आभार आपका..
सादर...
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर सरहनीय संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शालीन व जीवन्त प्रस्तुति। ।।।।
जवाब देंहटाएंआभार कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स का बहुत अच्छा संयोजन
जवाब देंहटाएंउम्दा अंक
जवाब देंहटाएंमेरी ब्लॉग पोस्ट को शीर्षक रूप में शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएं