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सोमवार, 25 जनवरी 2021

2019 ..उन्मुक्त कल्पनाओं के, स्वप्ननिल आकाश में

सादर अभिवादन

बीत रही जनवरी
कोई हंगामां नही
कोरोना की बढ़त भी नही
वेक्शिनेशन चालू आहे....
घरनी चांवल के दो दाने देखकर
अंदाज लगी लेती है...कि
चांवल पक गया है...

अब बढ़ें रचनाओं की ओर...
उन्मुक्त कल्पनाओं के, स्वप्ननिल आकाश में

मिरी नज़र में कोई कम नज़र नहीं 
हाँ आपको लगा होगा मगर नहीं 

हरिक हुनर सिखाऊंगा बेटे को पर 
फ़रेब देने वाला इक हुनर नहीं


(सचित्र झांकी)
राकेश शर्मा घुमक्कड़ हैं और इस घुमक्कड़ी में उनकी साथिन उनकी मोटर बाइक रहती हैं। न जाने कितने किलोमीटर का उनका यह साथ रहा है। मुझे भी यदा कदा उनकी इस गाड़ी पर सवारी करने का मौका मिलता रहता है।


यूँ तो, विचरते हो, मुक्त कल्पनाओं में, 
रह लेते हो, इन बंद पलकों में,
पर, नीर बन, बह जाते हो,
कब ठहरते हो तुम!

आसरा जो दिये मुश्किलों में सदा,
नाम होता गुणों के सकल गान का।।

साधना जो करे श्रेष्ठतम की सदा, 
सभ्यता में छुपा राज पहचान का ।।


ख़ुदकुशी करना बुरी बात उसे भी था पता 
पर किसी बात ने जिंदा उसे रहने न दिया 

अबकी बरसात ने कोशिश की गिराने की बहुत 
सिर्फ़ इक पेड़ ने  दीवार को  ढहने न दिया 
......
आज बस
कल शायद फिर आना पड़ा तो 
किसी बंद ब्लॉग से मिलवाऊँगी
सादर

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