मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?
सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?
जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?
जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?
हरिशंकर परसाई जी की इस कविता के बाद...
अब पेश है...आज की हलचल...
स्त्री ...
पल्लवी सक्सेना
जो समर में घाव खाता है उसी का मान होता है
छिपा उस वेदना में अमर बलिदान होता है
सृजन में चोट खाता है
छैनी और हथोड़ी का
वही पाषाण मंदिर में भगवान होता है ।
गुड़िया, नानी और बाजार
अर्चना चावजी
बोला ये तो चाईना सेल है ,नकली आप एवरेडी के डालियेगा ,तब इसकी स्पीड देखियेगा ...
सेल इसके साथ नहीं देते हम .....खैर ! पिता वहीं चुपचाप बैठे थे ...
मुझे मायरा दिख रही थी ...मैंने गुडिया खरीद ली ...
कल मायरा घर आने वाली थी तो बाज़ार से नोविनो के दो सेल भी लेकर आई ...
खुशी-खुशी मायरा के सामने पेकेट से सेल निकालकर उसमें लगाए और नीचे रखी ..
गुड़िया नही चली ...पर गा रही थी -धूम मचा ले ,धूम मचा ले धूम धूम धूम....
साथी
प्रीति सुराना
यूं तो दिखलाने को हंसती हूं मैं ज़माने को।
मेरी गुनगुन सुनकर खुशियां भी गीत गाती है।।
तनहाई में हरपल तेरी ही याद आती है।
लाख छुपाऊं फिर भी ये पलकें भीग जाती है।। ,...
खट्टे मीठे रिश्ते देते एहसास
रेखा जोशी
है जीवन में बनते बिगड़ते रिश्ते
दिल की गहराई से सँवरते रिश्ते
खट्टे मीठे रिश्ते देते एहसास
यहाँ प्यार मुहब्बत से खिलते रिश्ते
अब अंत में पढ़ें...
हिन्दू समाज के पतन के मुख्य कारण
डॉ विवेक आर्य
- वेद विदित सत्य, संयम, सदाचार और धर्म आचरण को छोड़कर पाखंडी गुरुओं के चरण धोने से,निर्मल बाबा के गोलगप्पों से,राधे माँ की चमकीली पोशाकों से मोक्ष होने जैसे अन्धविश्वास को मानना। आध्यात्मिक उन्नति का ह्रास होने से हिन्दू समाज की स्थिति बदतर हो गई।
- वेद विदित संगठन सूक्त एवं मित्रता की भावना का त्यागकर स्वार्थी हो जाने से। स्वयं के गुण, कर्म और स्वभाव को उच्च बनाने के स्थान पर दूसरे की परनिंदा, आलोचना, विरोध आदि में अपनी शक्ति व्यय करना। हिन्दू समाज में एकता की कमी का यह भी एक बड़ा कारण था.
तीन दिसंबर यानी कल...
विश्व विकलांगता दिवस है...
मैं सोचता हूं कि...
कोई भी शरीर से विकलांग नहीं होता...
विकलांग तो मन से होता है..
जो हिम्तम हार जाए...
जिसे हम आम भाषा में...
विकलांगता कहते हैं...
वो तो उसके शरीर में अन्य कमियों की तरह...
मात्र एक कमी है...
वो कोई भी कार्य करते वक्त ये ना सोचें कि मैं ये काम नही कर सकता...
बल्कि ये सोचें कि मैं ये काम कैसे कर सकता हूं...
पूर्ण ईश्वर ने किसी को नहीं बनाया...
न किसी को इतना अक्षम बनाया है कि जो कुछ भी न कर सके...
इस लिये जो विकलांग अपनी विकलांगता को लेकर...
ईश्वर या अपने भाग्य को कोस रहे हैं...
इस विक्लांग दिवस पर मैं उनको...
यही संदेश देना चाहता हूं कि...
ईश्वर ने अगर तुम से कुछ लिया है तो...
उसके बदले तुम्हे दिया क्या है...
ये जानने का प्रयास करो...
तुम्हें विकलांगता मात्र बाधा ही लगेगी...
अभिशाप कतई नहीं...
धन्यवाद।
बढ़िया प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंकोई भी शरीर से विकलांग नहीं होता...
जवाब देंहटाएंविकलांग तो मन से होता है..
जो हिम्तम हार जाए...
जिसे हम आम भाषा में...
विकलांगता कहते हैं...
...बहुत सही कहा
अच्छी प्रेरक हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
मेरी और अपनी कहानी
जवाब देंहटाएंकुछ ही शब्दों में
सादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं