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मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

150..असलियत भूल गए अपनी

सप्रेम नमस्कार
आश्चर्य तो नहीं
पर विश्वास अवश्य था
देवी जी का प्रयास रंग लाएगा
एक सौ उन्चासवीं प्रस्तुति तक
फॉलोव्हर की संख्या 58
कुल पृष्ठ दर्शन 30,199 हो गई
सहयोग हेतु आप सभी को आभार...


आज की चुनिन्दा रचनाओं की एक झलक...











आकांक्षा में
ऐसे सुर्खाव के पर लगे 
जमीन पर पैर न टिके 
असलियत भूल गए अपनी 
आसमाँ छूने को चले 
कुछ पल भी न गुजर पाए 


उन्नयन में
क्या लिखोगे सुखनवर पहले 
किसी सुख़न का अधिकार बन 
तमाशाई है ये दुनियाँ पहले 
किसी तमाशा का किरदार बन -


कबाड़खाना में
गेहूँ जौ के ऊपर सरसों की रंगीनी छाई है, 
पछुआ आ आ कर इसे झुलाती है, 
तेल से बसी लहरें कुछ भीनी भीनी,
नाक में समा जाती हैं, 
सप्रेम बुलाती है मानो यह झुक-झुक कर. 
समीप ही लेटी मटर खिलखिलाती है, 


साझा आसमान में
नर्मो-नाज़ुक   गुलाब    है  उर्दू
सादगी   का    सवाब     है  उर्दू 

हसरतों   का   हिसाब   है  उर्दू
ख़्वाहिशों  की  किताब  है  उर्दू 


काव्य संसार में
उस आईने में खुद को देख रहा है कोई, 
वो सज संवर के होने शिकार बैठा है । 

इस माहौल से हैं वाकिफ तुम और हम भी, 
इस उजड़े हुए बाग में ढूँढने बहार बैठा है । 


और आज की अंतिम झलक...

मन पाए विश्राम जहाँ में
एक आवाज पर मालिक की दौड़े आते
पुरानी मटमैली जैकेट में तन को ढांपते
मुंह में जाने क्या चबाते
ये बच्चे
अभी से बड़े हो गये हैं

आज्ञा दें दिग्विजय को

















10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा रचनाओं का आनंद उठाना बहुत अच्छा लगता है |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं
  2. सहियोग भी मिल रहा है...
    प्रचार भी हो रहा है...
    हम थोड़ा और प्रयास करेंगे तो और भी अच्छा होगा...
    सुंदर हलचल...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल । देरी के लिए क्षमा । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर हलचल । देरी के लिए क्षमा । आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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