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गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

मन, मौसम, पेड़, बेखयाली और चिट्ठी ..... 138

आप सभी को संजय भास्कर का नमस्कार
एक बार फिर हाजिर हूँ आपके साथ तो लुत्फ उठाइए कुछ प्यार भरी रचनाओं का  मेरे साथ:))

प्रेम के वैज्ञानिक लक्षण .........मुकेश सिन्हा 
जड़त्व के नियम के अनुसार ही, वो रुकी थी, थमी थी,
निहार रही थी, बस स्टैंड के चारो और
था शायद इन्तजार बस का या किसी और का तो नहीं ?

अच्छे से जानते हैं वो ............वंदना गुप्ता 
सूखे खेत चिंघाड़ते ही हैं
निर्विवाद सत्य है ये
फिर क्यों शोर मचा रही हैं
आकाश में चिरैयायें

मन, मौसम, पेड़, बेखयाली और चिट्ठी....... शचीन्द्र आर्य
कहीं कोई होगा, जो इस मौसम की ठंडक
को अपने अंदर उतरने दे रहा होगा।
 कोई न चाहते हुए भी ऐसा करने
को मजबूर होते हुए
खुद को कोस रहा होगा।

ठूँठ................शुभ जी 
  हाँ ..... ठूँठ हूँ मैं
 आते-जाते सभी लोग
 लगता है जैसे चिढ़ाते हुए निकल जाते मुझे
 भेजते लानत मुझ पर
 कहते - कैसा ठूँठ सा खड़ा है यहाँ

पापा की हथेलियों में ... ...सदा जी 
पापा की हथेलियों में होते मेरे
दोनो बाजू और मैं होती हवा में
तो बिल्‍कुल तितली हो जाती
खिलखिलाकर कहती

यही शून्यता राह है तेरी.........राहुल जी 
मैं सिर्फ
एक आदमी भर का
सवाल नहीं
एक शक्ल भी नहीं,
किसी समंदर में डूबे बुलबुलों का
गुच्छा भी नहीं

एक साँप के प्रति...........निहार रंजन 
बात बस इतनी सी थी
कि उसने अपनी टाँगे मेरे टाँगों पर रख दी थी
और सोचा था
कि जैसे नदी ने अपने में आकाश भर रखा है

मुस्कुराएगा जो सदा........शिवनाथ कुमार
वह तमाशबीन नहीं बना रहा
औरों की तरह
उठा और चढ़ गया आसमां पर
बन कर सूरज चमकने लगा !

-- संजय भास्कर


4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात संजय भाई
    अच्छी रचनाओॆ से परिचित करवाया आपने
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut salo bad blogg par ana huwa bhia... ek bar fir apko padh ke wo purane din yad agaye.

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

    जवाब देंहटाएं

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