सादर अभिवादन
अब डर सा लगता है
कि आप सब मिलकर मुझे
पाँच लिंकों के आनन्द से
निकाल बाहर न कर दें
क्योंकि मेरी पसंदीदा
रचनाएँ कुछ
अजीबो-गरीब सी
लगने लगी है आप सब को
बहरहाल चलते हैं फिर से अजीबो-गरीब कड़ियों की ओर..
काला अँधा सा ये जीवन, कैसा है यह बिका बिका?
क्यों हर चेहरा मुरझाया सा, क्यों है हर तन थका थका?
कब दौड़ेगी लाल लहू में, इक आग यूँ ही बैरागी सी?
स्फूर्ति-समर्पण-सम्मान सघन सी, निश्छल यूँ अनुरागी सी
कब इस शांत-लहर-डर मन में...
क्षितिज में है शून्यता, छाया अँधेरा
जम चुका है तारिकाओं का बसेरा
कितने निर्मम तुम भी लेकिन चान मेरे
चान मेरे तुम कहाँ हो
प्राण मेरे तुम कहाँ हो ?
धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,
ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।
रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,
पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।
हमें नहीं चाहिए
कोई उपहार
कोई गिफ्ट
कोई खिलौना रंग बिरंगा
आपसे
हमें तो बस
किसी बच्चे की
पुरानी फटी गुदड़ी
या फ़िर कोई
उतरन ही दे देना
जो इस हाड़ कंपाती
ठंडक में
हमें जिन्दा रख सके ।
पहले मैं रात में 'रंगीन सपने' आने से परेशान रहता था, अब मुझे 'असहिष्णुता' के सपने आते हैं। कल रात का सपना तो बहुत ही भयानक था। मैंने देखा कि पत्नी ने मुझे इस वजह से तलाक देने की घमकी दी है क्योंकि मैंने उसे आईफोन दिलवाने से मना कर दिया था। उसने तुरंत मुझे असहिष्णु पति कहते हुए तलाक देने की घमकी दे डाली। कल रात से मैं इत्ता डरा हुआ हूं कि आज का पूरा दिन 'तलाक के बाद मेरा क्या होगा' इसी सोच में बीत गया। हालांकि वो मात्र सपना ही था। पर पत्नी के मूड का क्या भरोसा कब सेंसेक्स की माफिक बदल जाए!
झरोख़ा में
मुंदी पलकों तले
कुछ सपने पले थे
मुस्कराये - सकुचाये
ठिठके - अलसाये से
और ये है आज की प्रस्तुति की अंतिम कड़ी
अभिव्यक्ति में
कभी तो उगेगा
सच का सूरज
और बढ़ेगा
रौशनी का कद
फिर देखना
ये अँधेरे कैसे डूबते हैं
आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते हैं
आभार यशोदा जी, शाश्वत शिल्प को सम्मिलित करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंचार और उत्तम रचनाओं का आस्वादन भी लिया ।
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ चुनी है आपने ..... बस ये समझ न आया कि आपने इन्हे अजीबोगरीब क्यों कहा .... :p
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
जवाब देंहटाएंरचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद.
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