आगत-विगत के
स्वागत और विदाई मे जुटा है
उलूक टाईम्स में
बिना डाक्टर को
कुछ भी बताये
कुछ भी दिखाये
बिना दवाई खाये
बने रहना पागल
सीख लेने के बाद
फिर कहाँ कुछ
किसी के लिये बचता है
मन का मंथन में
जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
जनतंत्र ही होगा,
किताबों की दुनिया में
नहीं चुनी मैंने वो ज़मीन जो वतन ठहरी
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना
नहीं चुना मैंने वो मजहब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया
और ये है आज की अंतिम कड़ी..
तुम्हारा देव में
पिछले दो घंटों से
ख़त लिखने की कोशिश में
कई कागज़ बेकार कर दिये।
लेकिन तब भी
चार पंक्तियाँ हाथ न लग सकीं।
आज्ञा दीजिए
फिर मिलेंगे
यशोदा
सुप्रभातं |बहुत ही सुन्दर लिंक्स |पांच लिंकों का आनन्द वाकई अभिभूत करने वाला है |सादर
जवाब देंहटाएंbahut sundar links jaise mala ke moti...
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों का संकलन किया है दीदी आपने...
जवाब देंहटाएंमुझे भी स्थान दिया आभार आप का...
अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंअत्यंत सराहनीय प्रयास, हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा जी 'उलूक' को अनुपस्थिति में भी चर्चा में दिखाया देखिये देखने के लिये दौड़ा चला आया ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स यशोदा जी
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