सारी दुनिया का अँधेरा मिलकर भी
एक दीपक से उसकी
रौशनी नहीं छीन सकता.
इसलिए
चमकते रहो !
स्वर्गीय गुरु तेग बहादुर
आज शहीदी दिवस
कविता मंच में..
योवन की पहली आहट जब ,लेने को आई अंगडाई
कोमल भावों ने धीरे से ,मन को ये आभास कराई
वर्षों से कल्पित आभा को ,आज पूर्ण साकार मिला है
भावों की बूंदों को मेरी ,नदिया का आकार मिला है
शुभ सुरुचि में
हर ओर चीख है पुकार है
हो रहा है क्रंदन ....
जुर्म कि दीवार के पीछे
है कैसा वहशीपन ....
मेरी धरोहर में
मांगने पर भी
जो मिल न पाया
ऐसा कुछ छूटा हुआ
बिछड़ा हुआ
कभी न कभी
याद आया
तो ज़रूर होगा !!
आकाक्षा में
मां ने देखी थी दुनिया
जानती थी है वहां क्या
तभी रोकाटोकी करती थी
शहर में
कहना
अलविदा किसी से
हमेशा बेहद मुश्किल होता है
अलविदा दिन अलविदा एक और शाम
कल
फिर होगी
हर शहर की एक नई सहर
ताज़गी और जीवन ऊर्जा से भरपूर
आज संजय जी नहीं आ सके
कोई तो होगी वजह
सबब मैं पूछूं क्यों
आज इतना ही
आज्ञा दें यशोदा को
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉग बहुत अच्छा लगता है |
बढ़िया लिंक्स संयोजन
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
सुन्दर लिंक्स से सजी खूबसूरत हलचल।बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सजी खूबसूरत हलचल।बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
भाई संजय के रूप में....
जवाब देंहटाएंआप की अच्छी प्रस्तुति....
समय पर स्थिति को संभाल लेते हैं....
आभार आप का...
Waaaaah kya baaat ati utttttm ....
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