सादर अभिवादन स्वीकारें
आज की प्रस्तुति
बगैर किसी लाग-लपेट के
पूरे सुकून से..
ये रही आज की पसंदीदा रचनाओं के सूत्र....
मानसरोवर के सुकून के किस्से
तो लोगों से सुने हैं
लेकिन सिर्फ मैं ये जानता हूँ -
जो तुम्हे एक बार और देख लूँ
लगा लूँ माथे से तुम्हारे खुरदुरे पैरों को
तो ये रूह पाक साफ़ हो खुद मानसरोवर हो जाए.
हो चुकी तकरीर वापस जाएं हम
या तुम्हें घर छोड़ कर भी आएं हम
तख़्ते-शाही तक उन्हें पहुंचाएं हम
और फिर ताज़िंदगी पछताएं हम
नयन तुम्हारे कान्ति-सरोवर,
चेहरे पर अभिराम ज्योत्सना ।
परिचय तेरा शब्द रहित है,
तुम पृथ्वी पर अमर-अंगना ।।
जो मेरा है वो तेरा भी अफ़साना हुआ तो
माहौल का अंदाज़ ही बेगाना हुआ तो
तुम क़त्ल से बचने का जतन खूब करो हो
क़ातिल का अगर लहज़ा शरीफ़ाना हुआ तो
वो पास खड़ी थी मेरे
दूर कहीं की रहने वाली
दिखती थी वो मुझको ऐसी
ज्यों मूक खड़ी हो डाली
पलभर उसके ऊपर उठे नयन
पलभर नीचे थे झपके
पसीज गया यह मन मेरा
जब आँसू उसके थे टपके
कविता मंच में
केलेंडर बदल
गया
खूंटी वही है
रातें गुजरती हैं
तारीखें बदलती हैं
कभी सोचा है
कि हम कहाँ हैं
खूंटी की तरह वहीँ
या फिर तारीखों की तरह
आगे बढ़ रहे हैं ।
और ये है इस प्रस्तुति की अंतिम कड़ी..
विश्वमोहन उवाच में
'हे राम' की करुण कराह
में राम-राज्य चीत्कारे
बजरंगी के जंगी बेटे
अपना घर ही जारे।
और अल्लाह की बात
न पूछ, दर दर फिरे मारे
बलवाई कसाई क़ाफ़िर
मस्ज़िद में डेरा डारे।
इसी के साथ आज्ञा माँगती है यशोदा
बहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन किया है दीदी आपने...
बहुत-बहुत आभार।
सुंदर प्रस्तुति दीदी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंपंचामृत पीयूष पीव निर्मल।
जवाब देंहटाएंसृजन समंदर हाला हलचल।।
साहित्य सरस सुख सुधा पयोदा।
नित नमन धन सुभग 'यशोदा ।।