सादर नमन......
अबके होली
कान्हा दिल में करो ना मलाल
अरे अगले साल
मचेगा धमाल
उडेगा फिर सतरंगी गुलाल
बनवारी, ओ बनवारी जरा घर तो आना
है टीका लगाना
कि मौसम करोना का है-२
राधे, मनवा तो माने नही है
मगर बतिया सही है
ये मौसम करोना का है-२
अबके होली, ना रंग लगाना
ना टोली बनाना
ये मौसम करोना का है-२
मेरा गांव कहीं खो गया है
होली की घीनड़
गणगौर का मेला
कहीं खो गया है
मेरा गांव कहीं ----
बनीठनी पनिहारिन
ग्वाले का अलगोजा
कहीं खो गया है
मेरा गांव कहीं ----
आँगन में मांडना
सावन में झूला
कहीं खो गया है
थोडी संजीदा होते हुये समीरा बोली
आप यहाँ के बारे में कितना जानती हैं, ये औरत जिसको अपना शौहर कह रही थी दरअसल वो उसका शौहर है ही नही, वो है लडकियों का सौदागर, ये दूसरे दूसरे मुल्कों से मजलूम लडकियों को जाता है, उनसे निकाह करता है, और फिर अगर लडका हुआ तो ठीक अगर लडकी हुयी तो, औरत को मार दिया और लडकी को अनाथाश्रम के रास्ते उसको अनाथ बताते हुये पहुँचा दिया बाजार। मैडम जी वो जानती थी कि अगर बेटी हुयी तो उसकी जिन्दगी में मरना तो तय है, चाहे जन्म से पहले मरे या जन्म के बाद रोज मर मर कर जिये और एक दिन फिर उसी की तरह किसी लडकी को जन्म देकर मर जाय। रात भर मैं परेशान रही ये सोच कर कि मैने सही किया या गलत, क्या उसका औरत होना कुसूर था? क्या वो यहाँ से भाग नही सकती? क्या वो पुलिस की मदद नही ले सकती थी? बडी मुश्किल से सो पायी थी उस रात। सुबह देर से नींद खुली, विवेक अस्पताल जा चुके थे, मेरा सिर भारी हो रहा था, सोचा एक कप चाय पी लेती हूँ, चाय बना कर टेलीविजन ऑन किया, न्यूज का जो सीन मेरी आँखों के सामने था उसे देखकर हाथ में आ गयी मेज को अगर कस कर पकड ना लिया होता तो चक्कर खा कर गिर ही जाती। बीच बाजार में दो लोगों ने, पुलिस वालों की मौजूदगी में एक महिला का सरेआम कत्ल कर दिया था। न्यूज वाले बता रहे थे, उस पर अपने गर्भ में पल रही लडकी को मारने का इल्जाम था। और इसी कत्ल की उसे सजा दी गयी थी।
मैं इन बातों को सुनकर हैरान हुई,
और सोचने लगी कि इस तरह तो गाँव को महिला प्रधान होने का कोई फ़ायदा नहीं मिल सकता, और महिला प्रधान अपनी प्रतिभा के द्वारा कोई कार्य कर ही नहीं पाएगी, इसके लिए सरकार को और समाज को कोई न कोई ठोस कदम उठाने होंगे ।जिससे महिला प्रधान अपने हिसाब से अपने कार्य को करे और ग्रामीण जीवन की हर छोटी बड़ी समस्या का निराकरण कर सके तथा गाँव के साथ साथ ग्रामीण महिलाओं और उनके बच्चों के जीवन स्तर में सुधार ला सके । तभी गाँवों को महिला प्रधान होने का फ़ायदा मिलेगा।
बस गयी बारूद की खुशबू हवा में
इस तरह से सड़ चुका पर्यावरण है
भूख से वो उम्र भर लड़ता रहेगा
जिसने ढूंढा ताल छंद और व्याकरण है
हैं मेरे भी मित्र क्या तुमको बताऊँ
सांप से ज्यादा विषैला आचरण है
प्रेम के दो बोल हैं सपनों की बातें
विष में डूबा आज हर अन्तःकरण है
आन पे जब आँच पड़ी शमशीर निकाला हमने!
समुन्दर जैसी खारी ,पर पावन गंगा जल मै हूँ ;
पति की अंकशायनी पर सहचरी भी मैं हूँ !
दहेज की बलि वेदी पे उत्सर्ग करूँ स्वयं को;
इतनी लाचार नही,नव युग की शक्ति,चण्डी मै हूँ!
बिटिया पढ़कर घर आयेगी--
आकर गले से लग जायेगी ,
उस पल याद तुम्हारी आती है -
एक छवि मुखर हो जाती है --
जब थकी -
थकी मेरी प्रतीक्षा में तू -
आंगन में बैठी होती थी ;
देख के मेरा मुखड़ा माँ
तू
ख़ुशी के आंसू रो देती थी ;
होली के सभी रंगों के साथ........
मचाएंगे धमाल......
करोना का नाम तक नहीं होगा......
इसी शुभकामना के साथ......
धन्यवाद।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंपुनः रंगोत्सव व भाईदूज की शुभकामनाएँ
बढ़िया अंक सुंदर रचनाएँ
सादर..
सुन्दर अंक सभी रचनाये बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंविभिन्नता समेटे बहुत सुंदर अंक ।
सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत खूबसूरत रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण लिंकों से सजी सुंदर प्रस्तुति प्रिय कुलदीप जी | सभी लिंक जिनमें से प्राय पुराने हैं ,आपके उत्तम पाठक होने के प्रतीक हैं | मेरी रचना आपकी प्रस्तुति में दूसरी बार , तो पांच लिंक मंच पर कुल तीन बार आई जो मेरे लिए गर्व का विषय है | मेरी ये रचना मेरे मन के बहुत करीब है , जिनमें से आखिर पैरा मेरी माँ के लिए तो शेष मेरी स्वर्गीय दादी जी के लिए है, जिन्हेंने मुझे बचपन में पाला था | कोटि आभार कि आपको ये रचना स्मरण रही |आज के ज्यादातर लिंक नारी विमर्श पर आधारित हैं जो हम महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है | अच्छा लगा प्रस्तुति में गद्य को भी समान रूप से स्थान मिला है | प्रसंगवश कहना चाहूंगी , प्राय मंच पर गद्य विधा उपेक्षित रही है | गद्य लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए गद्य रचनाओं को मंच पर स्थान दिया जाना बहुत जरूरी है ताकि रचनाकार का मनोबल बढ़े और पाठकों तक सार्थक सृजन की पहुँच बने | कई रचनाकार तो दो - दो विधाओं में बहुत ही उम्दा लेखन कर रहे हैं -जैसे गोपेश जी , संदीप जी , विश्वमोहन जी , अनुराधा चौहान जी , जितेन्द्र माथुर जी और अन्य कई लोग हैं जिनका नाम याद नहीं आ रहा | संदीप जी के लेख पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तो गोपेश की के व्यंग बेमिसाल हैं | जितेन्द्र जी के लेख समीक्षात्मक दृष्टि से बहुत बढिया हैं |वहीँ विश्वमोहन जी के सांस्कृतिक और ऐतहासिक महत्व के लेखों को , जिनमें उनकी वैदिक साहित्य पर श्रमसाध्य अनुवाद श्रृंखला भी है-- जिसकी मेहनत की तुलना करना असंभव है , को भी मंच पर बहुधा स्थान ना मिल पाया , जबकि सबकी कविताओं को प्रमुखता से लिया जाता है | मुझे लगता है कवितायेँ पाठक स्वेच्छा से भी बहुत पढ़ लेते हैं पर लिंक संयोजन का हिस्सा बनाने के बाद लेख बहुत बड़े पाठक वर्ग तक पहुँचते हैं | जिससे लेखक को भी अपने मेहनत से लिखे लेखों पर संतोष होता है क्योकि लेखों में अपेक्षाकृत ज्यादा चिंतन और श्रम लगता है |
जवाब देंहटाएं| आशा है भविष्य में लेखों को ओर भी पांच लिंकों की दृष्टि रहेगी |
आपको पुनः हार्दिक आभार , बधाई और शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंलेकिन पता नही क्यों किसी भी रचनाकार को औपचारिक सूचना नहीं दी गयी??
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सारगर्भित सूत्रों का संयोजन के लिए आपको बहुत बधाई कुलदीप ठाकुर जी,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार, मुझे रेणु जी के माध्यम से सूचना मिली,जिसके लिए उनको मेरा सादर धन्यवाद । सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंकुलदीप जी क्षमा याचना के साथ आज आपके दिए लिंक्स पर गयी । बहुत पसंद आये सारे लिंक । अभी भी कुछ पूरे नहीं पढ़ पाई । लेकिन पढूंगी ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ।