हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...
विदेश में पतझड़ में भी रंगोल्लास दिखा अभी देश में बसन्त का धूम फिर उजाड़ दिवस से सामना... पता है.. क्रचक्री .. फिर भी उदासी को झेलना कठिन क्यों ... उलझा मन का
भंवर
मासूम एक चेहरा मेरा, कातिल बना है
मजबूर हूँ मैं, वो मेरी ,मंजिल बना है
है कौन सा रिश्ता मेरा, उससे ना जाने
आ गए हैं मेरे, होठों पर तराने
मकसद मेरा करना उसे, हासिल बना है
दरअसल देवदूत ने जब पास जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया तब उन्हें कुछ पानी जैसा प्रतीत हुआ तो उन्होंने पूछा कि “हे भगवान्” ये इसके गालों पर पानी जैसा क्या है ? भगवान् ने कहा ये आंसू है। तब देवदूत ने बहुत ही हैरान होकर “पूछा आंसू ” पर वो किसलिए ? इस पर भगवान ने कहा “जब भी कभी ये कमज़ोर पड़ने लगे तब ये अपनी सारी पीड़ा आंसुओ के साथ बहा देती है और फिर से मजबूत बन जाती है। अर्थात अपने दुखो को भुलाने का इसके पास ये सबसे बेहतर तरीका है।”
मेरे लिये दोनो ही रिश्ते जज्बातो से जुड़े हैं।
एक को भी खो दिया तो जी नही पाएंगे।
रिश्तों में कैद मेरी ज़िंदगी है।
खुल कर जीना चाहती हूं ज़िन्दगी अपनी।
मगर दिल की बेचैनी ने परेशान कर रखा है।
रिश्तों में खुद को उलझा रखा है
जीवन में धन-ज्ञान-कीर्ति आदि की सीमाएं समझने, पेशे में ईमानदारी और नैतिक मूल्यों को जगाए रखने के लिए पण्डित चन्द्रबली त्रिपाठी के व्यक्तित्त्व और कृतित्व के बारे में बस्ती जिले, प्रदेश और देश के ही नहीं समस्त विश्व को अधिक से अधिक जानना चाहिए। हमारा दुर्भाग्य जो हम उनके बारे में इतना कम जानते हैं और उनकी अमर कृति 'उपनिषद रहस्य' के दो खण्ड आज भी अप्रकाशित रह गए हैं।
प्रेम के चक्कर में जो इन्साँ पड़ा
बड़ा घनचक्कर उसे कहते हैं हम।
प्रेम से भोजन बड़ा है
बात यह पूरी सही कहते हैं हम।
प्रेम न करने से कोई
मृत्यु को पाता नहीं
किन्तु भोजन के बिना
मर जाओगे निश्चय ही तुम।
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पुन: भेंट होगी...
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आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
सदा की तरह अद्भुत अंक
आभार..
सादर..
वाह!बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंMere Blog Par Apka Swagat Hai.
वाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआज अभी लिंक्स देखे नहीं हैं जाते हैं थोड़ी देर में ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ही अच्छी होगी ।
प्रेम किया नहीं जाता बस एक्सीडेंट की तरह है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धनयवाद !
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