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शनिवार, 27 मार्च 2021

2080...मन्मथोत्सव


हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...

बरगद

परिवार तो बरगद की छाँव है

तुम जो ठीक समझो...

खुश रहो, मगर सुनते भी जाओ -

तुम सागर को छोड़ एक्वेरियम में जा रहे हो

अंग्रेजों की लाठी खाई है

और इंगलिश सीखी है उनसे ही...

कभी अपने आपको अकेला महसूस करो

तो...तुम्हारे इसी एक्वेरियम के सामने बैठकर

मछलियों की आंखों में झांकना

पढ़ना उनकी व्यथा को

बरगद

कभी कभी

मैं सोचता हूं

काश इंसान भी न बदलते

लेकिन

फिर अचानक

हवा का एक  झोंका आता है

कल्‍पना से परे

हकीकत से सामना होता है

बरगद

बरगद का वो बूढ़ा पेड़,

खड़ा चुपचाप सड़क किनारे,

आने जाने वालों को जाने

 कब से रहा निहारे . कितने ... 

इसने बांधे थे कभी

बरगद पर सुहाग के धागे

बरगद

जर्जर होकर कहीं से ख़त्म होता है बरगद

पर ठीक उसी वक़्त होता है पुनर्जीवित भी

अपने तनों की लड़ियों को

पत्तियों के संसार से धरती की यात्रा कराता है

फिर समानांतर  कई तने विकसित करता है

यही स्वनिर्मित दुनियावी सहारे हैं

और अन्ततः यही हमें बचाते हैं

बरगद

बगीचे को निहारते हुए जब अनीता आगे बढ़ी तो अचानक एक पेड़ को देखकर कहने लगी ये क्या भैया मैंने पिछली बार भी आपको इस पेड़ को काटने को कहा था, इस बार भी आपने आलस दिखा दिया ।

माली ने कहा :- मैं आलसी नहीं हूँ बीबीजी मै आज इस पेड़ को काट देता पर जैसे ही मैंने कुल्हाड़ी उठाई ऐसा लगा इस पेड़ ने मेरे हाथ पकड़ लिए हैं और कह रहा है कि पुराना हूँ तो क्या हुआ, माना कि फल फूल नहीं देता ,लेकिन इस बगीचे और लॉन को कड़ी धूप से तो बचाता हूँ ,कुछ साल बाद कमजोर होकर मैं खुद ही गिर जाऊँगा ।

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पुनः भेंट होगी...

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8 टिप्‍पणियां:

  1. जी दी प्रणाम,
    सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है।
    हमेशा की तरह सराहनीय अंक दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय दीदी
    सादर नमन दीदी..
    रंगपर्व की अग्रिम शुभकामनाएं..
    आज बरगद मन्थन
    आल्हादित कर गया..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर अभिनव अंक हमेशा की तरह! सभी रचनाएँ शानदार। बरगद की छाँह भला किसे अच्छी नहीं लगती और किसकी यादों में बरगद नहीं। पकज जी की मार्मिक प्रस्तुति पढ़कर बहुत अच्छा लगा। वे जमीन से जुड़े रचनाकार और बहुत गहरे कवि हैं कथा से लेकर सभी रचनाएँ हृदयस्पर्शी हैं। बरगद और बुजुर्ग एक दूसरे के पर्याय हैं। बहुधा इनकी छाया की कीमत इनके ना रहने पर पता चलती है। मेरी एक अप्रकाशित रचना से दो पंक्तियाँ---++
    नित मेरी राह निहारा करते
    दो तरल नयन गदगद से
    घर की दीवार को थामे बैठे
    बाबा बूढ़े बरगद से/////
    बरगद का ये अंक कई भूले -बिसरे बरगद याद दिला गया। बचपन के घने पेडों और बुजुर्गों के चेहरे अनायास पलकों में जीवंत हो उठे जो समय की आँधी में नहीं रहे।
    अंत में सभी को सुप्रभात और प्रणाम के साथ होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। होली सभी के किये शुभता और खुशियों भरी हो, यही कामना है।
    मेरी एक रचना ----
    शुक्र है गाँव में एक बरगद तो बचा है

    का लिंक सुधी पाठकों के लिए-----

    https://renuskshitij.blogspot.com/2017/08/blog-post.html

    आपको प्रणाम और होली की शुभकामनाएँ।
    जो रंग आपके सुंदर चित्र में सजे हैं वही आपके जीवन में खिले रहें। प्रणाम और आभार 🙏🙏❤❤🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  5. आज तो बरगद की छाँह में सुस्ता लिए ।अच्छे लिंक्स । आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. कभी कभी

    मैं सोचता हूं

    काश इंसान भी न बदलते

    लेकिन

    फिर अचानक

    हवा का एक झोंका आता हैExample1

    जवाब देंहटाएं
  7. कमाल का संयोजन...

    होली की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया विभा जी एवं सभी साहित्य मनीषियों को 🙏

    जवाब देंहटाएं

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