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गुरुवार, 18 मार्च 2021

2071...मिले जो नेह की गिनती, दहाई पर अटक जाए...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

लहूलुहान संवेदनाएँ...संगीता स्वरुप (गीत) 


सारी संवेदनाएं खुद के ही कांटों से 

हो जाती हैं लहू लुहान 

फिर किसी बीज के अंकुरण से

निकलती कोंपलें 

कर देती हैं आशा का संचार 

एक अजनबी...अपर्णा बाजपेयी


शब्द हमारे बीच अज़नबी रहे, और भाषा अनावश्यक

फ़िर मैं उठी, विदा में तुम्हारी ओर देखा,

अचानक तुमने थाम ली मेरी उंगली....

तुम्हारी आँखों में भर आया जल,

और मैं नेह के सागर में डूब गई...


पत्र-पेटी...सुजाता प्रिये 'समृद्धि'

सरकारी दफ्तर में बनी हुई है,

संदेश-प्रेषण में डाक की महत्ता

आज भी सभी जन को होती है,

पत्र पाने की व्याकुलता।


नेह का गणित...नीतू ठाकुर 'विदुषी'



मिले जो नेह की गिनती, दहाई पर अटक जाए। 
जमा करलो घटा बेशक मगर उत्तर खटक जाए। 
गणित के जाल में उलझे पहाड़ा प्रेम का झूठा। 
चले दिन रात मन सीधा परीक्षा में भटक जाए। 

"तुम धनिया की तनख़्वाह मत काटना और हो सके तो इस महीने से कुछ बढ़ाकर देंगे। पता नही अब अकेले तीन बच्चों को कैसे संभालेगी?" 

अरुण गाड़ी का म्यूज़िक ऑन करते हुए बोलता है।

तभी रति भूख से छटपटाती हुई बोलती है -

"जल्दी चलाओ अरुण, आज ऑफिस में भी कुछ खाने का टाइम नही मिला।"

*****


आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार। 


रवीन्द्र सिंह यादव 


5 टिप्‍पणियां:

  1. सभी लिंक्स शानदार , चिट्ठियों का ज़माना याद आया ..भूला बिसरा गणित दोहराया , एक अजनबी से प्यारी से मुलाकात रही , यमराज से थोडा दूरी बनाने कि प्रेरणा मिली .
    बाकी तो मैं और मेरी संवेदनाएं :) :)

    कुल मिला कर चर्चा बढ़िया लगी .

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति, लाजवाब लिंक्स।
    सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर।
    सभी को सादर प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं

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