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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

4188....चंद.पैसों की ख़ातिर...

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मनुष्य अगर  प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर आत्मसात कर लें तो अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव कर सकता है। दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे- पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। 

दिन ढलने का अर्थ सिर्फ़ अंधकार नहीं होता प्रकृति जीवन को नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती है जरूरत है उसके संदेश को समझने की।

सोचती हूँ 
समय-समय पर हमें चेताती
प्रकृति की भाषा समझकर भी 
संज्ञाशून्य है मनुष्य, 
   तस्वीरों में कैद प्रकृति के अद्भुत सौदर्य 
और पुस्तक में 
लिपिबद्ध जीवनदायिनी
गुणों की पूँजी
 आने वाली पीढ़ियों के लिए 
धरोहर संजो रही
शायद...?

आज की रचनाएँ-

शक्ति,साधन,मर्यादा,दर्प और ऐश्वर्य 
शकुनि के पासों के आगे नत-मस्तक
छल बल है निरपराध के लिए घातक  
नियम पालन की नैतिकता से बँधे रहे महारथी चुपचाप  
स्त्री-गरिमा होती तार-तार देखते रहे क्रूरता का नाच


आक्रोश से भर उठता है दिल 

जब आतंकवादी निशाना बना देते हैं 

जवानों को आये दिन 

चंद पैसों की ख़ातिर 

सत्ता की ताक़त में मदहोश सरकारें 

वोट की ख़ातिर बर्दाश्त करती हैं 

हिंसा और अन्याय 

अपने ही नागरिकों पर !




कुछ टूटकर दुबारा जुड़ जाएंगे,

ऐसे कि पता ही न चले 

कि कभी टूटे भी थे, 

कुछ जुड़ तो जाएंगे,

पर एक दरार के साथ,

जो जीवित रखेगी 

फिर से टूटने की संभावना. 


बरगद की जड़ें पकड़ चरवाहे झूल रहे
विरहा की तानों में विरहा सब भूल रहे
अगली सहालक तक व्याहों की बात टली
बात बड़ी छोटी पर बहुतों को बहुत खली
नीम तले चौरा पर-
मीरा की गुड़िया के
व्याह वाली चर्चा 
रस घोल गई। 



मैं असल में जी रही हूँ हवाओं में
जबरन हँसती रहती हूँ
सुनकर बेमतलब के चुटकुले .
पाले हूँ खूबसूरती का अहसास
दूसरों के दर्पण में .
इन्तज़ार करती हूँ
बेवज़ह उसका
जिसने आज तक
तारीख तय नहीं की
अपने आने की .



लेकिन  जब भी अच्छी तरह साफ करती ,मसाले भरती 
अक्सर ही मसालेदान या तो हडबडी में टेढा हो जाता और सारे मसाले आपस में गड्डमड्ड....  .बहुत  बुरा लगता 
 फिर मैंनें भी बस थोड़े-थोड़े मसाले ही निकालने शुरु कर दिए  और फिर ये आदत में शुमार  हो गया ।


इस यात्रा की पूरी योजना के अनुसार हमें सुबह चार से पांच बजे के बीच दिल्ली छोड़ देना था और हम रुकते चलते देर शाम रात तक इंदौर पहुँच कर अगले दिन यानि रविवार को आराम विश्राम के बाद सोमवार से पुत्र अपनी प्रतियोगिता में व्यस्त होने वाले थे और हम और हमारे सारथी साथी हमनाम अजय दोनों अगले तीन दिनों तक आसपास का सब कुछ देख लेने के विचार में थे।  अब पहला चक्कर तो ये हुआ कि सुबह पांच तो दूर शाम के पांच बजे भी हम दिल्ली में ही थे और जाने को तैयार बैठे थे , बच्चों की मम्मी की डाँट के साथ ही हम दो टाइम का खाना घर पर ही खा चुके थे और रात्रि भोजन के भी आसार यहीं के थे , कारण कुछ अपरिहार्य थे जो सो दस बजे रात को हम दिल्ली से विदा हुए। 

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक
    स्तरीय रचनाएं
    आभार
    सादर वंदे

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात, सार्थक भूमिका और सराहनीय रचनाओं के सूत्र देता सुंदर अंक, आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार अंक प्रिय श्वेता !मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. पोस्ट लिंक साझा करके पोस्ट को मान और स्थान देने के लिए शुक्रिया , बहुत समय बाद आना हुआ है अच्छा लगा कि आप नियमित हैं , साझा किये गए लिंक से पोस्ट पढता हूँ सारे

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर अंक. मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. चुने गये सभी ब्लाग पढ़ लिये। बहुत बढ़िया चयन। मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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