।।उषा स्वस्ति।।
"चाहे जो भी फसल उगा ले,
तू जलधार बहाता चल।
जिसका भी घर चमक उठे,
तू मुक्त प्रकाश लुटाता चल।
रोक नहीं अपने अन्तर का
वेग किसी आशंका से,
मन में उठें भाव जो, उनको
गीत बना कर गाता चल..!!"
दिनकर
विशाल मनोभाव लिए पंक्तिया और हमारी छोटी सी बात में आज शामिल है..✍️
मेरे बदलने की उम्र बहुत लम्बी है
मैं बदल गयी हूँ पहले से
हाँ मैं बदल गयी हूँ
खोटे सिक्के सी उछाले जाने पर
रोती नहीं हूँ
जश्न मनाती हूँ
फेंक दिये जाने की स्वतंत्रता ..
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सुकून का आखिरी दिन
सुकून का आखिरी दिन
आप अपने जीवन से संतुष्ट थे | अपनी औकात से वाकिफ | क्या साध्य है क्या आसाध्य इससे परिचित | इच्छाएं तिलांजित किये हुए |
फिर कोई मिल गया | चढ़ते सूरज के साथ नहीं मिला | तब मिला जब सूरज दोपहर के बाद ढलान पर था | वो मिला तो उसने बड़े प्यार से कहा "आप बुद्दू हो , एकदम पागल |आपको
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अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है
कहते हैं कि विपक्ष सत्ता पर अंकुश का काम करता है। अपने सकारात्मक व्यवहार से। किसी महावत की तरह। लेकिन अठारहवीं लोकसभा को सब से ज़्यादा विध्वंसक विपक्ष मिला है।
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पीड़ा है बीड़ा है कैसी यह क्रीड़ा है
मन बावरा हो करता बस हुंकार
पास हो कि दूर हो तुम जरूर हो
कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार..
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अंतरिक्ष कार्यक्रम अच्छा है अगर .........
हमने
बना दिया है
कूड़ा घर
इस दुनिया के पार
सुदूर अंतरिक्ष को भी
कभी ..
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सार्थक एवं प्रेरक पंक्तियों से सुशोभित पठनीय अंक।
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