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मंगलवार, 30 जुलाई 2024

4202....मेरी रीतिहीन पूजा...

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मनुष्य के ज्ञान का सबसे मुख्य और महत्त्वपूर्ण स्रोत है किताब।
अपनी बुद्धि विवेक के क्षमतानुसार अर्जित ज्ञान 
का लिपिबद्ध संकलन,जिसे समयानुसार हम उपयोग कर सकते है।
सृष्टि के सृजन का रहस्य से लेकर जीवन की सूक्ष्म बारीकियों का लिखित प्रमाण,जिसे आवश्यकतानुसार हम आत्मसात कर 
जीवन की जटिलताओं से जूझने के लिए मार्गदर्शन पा सकते हैं।
किताबों का संसार अत्यंत विस्तृत और रोचक होता है जिसमें कल्पना के साथ यथार्थ का अद्भुत तालमेल होता है। 
परंतु डिजिटल क्रांति के इस दौर में जब सार ज्ञान
इलेक्ट्रॉनिक डेटा में बदल गया है तो
 किताबों का
अस्तित्व कितना अक्षुण्ण रहेगा यह
 प्रश्न चिन्ह उठना स्वाभाविक है न..!
मुझे किताबें पढ़ना बहुत पसंद है आपने किताबों से दोस्ती की है क्या?
आपकी पसंदीदा किताब कौन सी है ?

आज की रचनाएँ-



मेरी आंखें शंखनाद बनीं
रक्त वाहिकाओं में दौड़ता 
ॐ का अनवरत उच्चार
अहर्निश जलता दीप बना 
और बेलपत्र,अक्षत,
भांग, धतूरा,नैवेद्य में काया ढल गई...
अंतर्मन अभिषेक का गंगाजल हुआ
और निर्विघ्न संपन्न होती रही 
मेरी रीतिहीन पूजा !


आजकल दर्पण उपेक्षित से पड़े हैं


विष  भरे  कितने  ही  सोने के घड़े हैं
कितने  के  गहनों में हीरे तक जड़े हैं
किंतु जब भी आचरण की बात आयी
दृष्टि   में   वे  हर  दिशा  से ही सड़े हैं
 




हमको घर जाना है



अकेलापन काटने को आये 
तब एक आवाज़ अंदर से ख़ुद को कहती है 
हमको घर जाना है 
आज भी वही हुआ 
ज्ञान और विज्ञान के तर्क से 
ज़िंदगी की मौजूदगी को मरते देख 
वही बात कौंध उठी 
घर जाना है! 


गांव से निकला 
बह गया धारा में 
धारा से नदी 
नदी से समद्र में 
समा गया मैं 
अफ़सोस 
अब महानगर में हूँ 
यहाँ होकर भी 
नहीं हूँ मैं 






प्रातः भ्रमण के लिए बहुत देर हो चुकी थी। कहाँ भोर में 5 बजे साइकिल लेकर घर से निकल पड़ता, कहाँ उठने में ही 6 बज चुके थे। देर हुआ तो क्या हुआ, कौन ऑफिस जाना है, सोच कर तैयार हुआ तो मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। ध्यान गया, कल रात 12 बजे के बाद पुस्तक समाप्त हुई थी, उठने में देर तो होना ही था। बाहर जोरदार वर्षात हो रही, हम फिर पुस्तक की याद में खो गए। 

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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट लिंक्स से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।

    सही कहा डिजिटल क्रांति के इस दौर में जब सार ज्ञान इलेक्ट्रॉनिक डेटा में बदल गया है तो किताबों का अस्तित्व कितना अक्षुण्ण रहेगा ..।

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय श्वेता, एक सार्थक भूमिका के साथ एक सुंदर प्रस्तुति! निश्चित रूप से किताबो से बढ़कर कोई मित्र नही! ये इतिहास हैं!, भूगोल हैं अतीत हैं और एक उज्जवल भविष्य है। यूँ लोग खूब पढ़ रहे हैं! पर साहित्य उपेक्षित है! मेरे पास भी ढेरों किताबें है! आजकल समयाभाव के! यदि सबसे ज्यादा पसदीदा कहूँ तो कई हैं! रांगेय राघव जी की', कब तक पुकारूँ? ' शिवानी जी का कथा संग्रह' गेंडा' विमल मित्र जी का कहानी संग्रह " वे आँखें' शरत चन्द्र जी की' चरित्रहीन' के साथ यशपाल जी का उपन्यास' देशद्रोही' स्मरण ही आता है! बाकी हर किताब एक लेखक की शब्द साधना का अमूल्य दस्तावेज है! आज की सभी रचनाएँ सरस रही! सभी रचनाकारों को बधाई और तुम्हें आभार और प्यार ❤

    जवाब देंहटाएं

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