शीर्षक पंक्ति:आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
जब सह लेता है कोई
धैर्य और दृढ़ता से
अपरिहार्य है पीड़ा
यदि देह को सताती है
अधिक से अधिक मन तक
हो सकती है उसकी पहुँच
पर 'स्वयं'
अछूता रह जाता है
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ये दूरियां, पर है वो हर पल यहां,
बंधता यादों का शमां,
फैलता गहराता घेरता धुआं,
नीला आसमां,
स्वप्निल ये पल, ऐसे ही तो न थे!
लगे वो अपने से, या वो, अपने ही थे!
या, थे वो सपने!
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अगले आठ अध्यायों का संकलन अगले भाग “पक्षियों की नींद” के अंतर्गत है. इस भाग की हर बात को अपना स्नेह
दूँगी. यह पुस्तक का दिल है. लेखक ने पक्षियों-पशुओं के जीवन के सच इतने मर्म से
उकेरे हैं कि एक समानुभूति की मिठास हर शब्द से आती है चाहे वह सी एनिमल्स हों, रेप्टाइल्स हों अथवा चौपाये. सोन चिड़िया के
गिरने और उसकी पहचान करने से एक मुस्लिम परिवार का लड़का सलीम अली किस तरह पक्षी
शास्त्री हो गया, यह इसमें बताया गया है और हाँ मुस्लिम शब्द इस
पूरी पुस्तक में मात्र यहीं पर आया है.
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सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।
सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।
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शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार..
सादर वंदे
जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को इस मंच तक लाकर .. विविध मर्मों को स्पर्श करते विविध विषयों की अपनी बहुरंगी प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने हेतु ...
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! पठनीय रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति, आज के अंक में 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु अति आभार !
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति की दो रचनाकारों के Blog के पन्ने पर "Sign in with google" चस्पा हुआ है, जिससे ज्योति खरे Sir की भाषा में कहें तो लोकेष्णा (लोकेषणा) जी की तरह ही हमारे जैसे फफूँद लगे Blog से प्रतिक्रिया देने में हमारी असमर्थता है।
जवाब देंहटाएंअतः इस मंच के माध्यम से उन दो महान रचनाकारों - Sujata Priye जी एवं Anita जी की रचनाओं की कुछ मूढ़तापूर्ण समीक्षा करने का प्रयास भर ...
Sujata Priye जी की भक्तिपूर्ण रचना आस्तिकों के विश्वास और आशा के ताने-बाने पर बुनी हुई एक चदरिया-सी है।
वैसे तो इनके द्वारा इतना ज्यादा सोना इस्तेमाल करने के कारण ही दिन पर दिन सोने का भाव बढ़ता जा रहा है और नतीज़न अम्बानी परिवार जैसे show off वालों को तो अन्तर नहीं पड़ता, पर .. ग़रीब पिता को अपनी बेटी की शादी में सोना जुटाने में उनकी मरी हुई नानी-दादी सब याद आ जाती हैं। अतः निवेदन है, कि इतना निवेश ना करें पूजन में .. सोने का (🙄🤔)
(😂 बुरा नहीं मानिएगा, उपरोक्त बातें केवल हँसने के लिए बोला हूँ .. बस यूँ ही ...)
Anita जी .. आपकी पीड़ा से भरी, पीड़ा के सकारात्मक पहलू को उजागर करती रचना इस तथ्य की भी पुष्टी करती है, कि इस धरती पर जीव-जीवन ही आया है पीड़ा के बाद .. किसी भी प्राणी की माँ प्रसव पीड़ा सहन करती है, तभी तो किसी भी जीव का जन्म हो पाता है। पीड़ा हमारी अनुवांशिकता है और हमारे जीन में है .. एक मार्मिक रचना ...
बहुत सुंदर संकलन,
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