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शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

4198...तेरी.मिट्टी में मिल जावा...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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कारगिल दिवस

 भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा से जुड़ा 
एक अविस्मरणीय दिन है।
60 दिन तक चले भारत-पाक युद्ध का अंत
26 जुलाई 1999 को हुआ।
कारगिल में शहीद हुये
सैनिकों के सम्मान और विजयोपहार
को याद करने के लिए यह दिन 
कारगिल दिवस के रुप में 
घोषित किया गया।
वैसे तो हम देशवासियों का 
हर दिन हर पल 
इन वीर जवानों का कर्ज़दार है।
सैनिकों के त्याग और बलिदान 
के बल पर हम अपनी सीमाओं में सुरक्षित
जाति-धर्म पर गर्व करते हुये
सौ मुद्दों पर आपस में माथा फुटौव्वल करते रहते हैं।
अपने देश में अपनी सुविधा में उपलब्ध चारदीवारी में  
चैन की नींद सो पाते हैं
तो बस हमारे सीमा प्रहरियों की वजह से।
 सिर्फ़ दिन विशेष ही नहीं
अपितु हर दिन एक बार 
हमारे वीर जवानों का उनके कर्तव्य के नाम पर किये गये बहुमूल्य बलिदानों के लिए हृदय से हमें धन्यवाद 
अवश्य करना चाहिये।

 सैनिक  जाति-धर्म के बंधनों
से मुक्त कर्तव्य के पथ पर
चलते रहते हैं। देश के लिए समर्पित, देश की जनता की प्राणों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर सैनिकों का कर्ज़
है हमपर, यह सदैव स्मरण रखना और सच्चे मन से उन्हें सम्मान देना यह प्रमाणित करती है कि स्वयं की खोल में सिमटते स्पंदनहीन दौर में भी दिलों में देश के सपूतों के लिए अगाध श्रद्धा और 
मानवता के बीज जीवित है।

सुनो सैनिक!
तुमने पोछें है आँसू, दिया सदैव संबल
तुमने रोके हैं शत्रु, बने  रक्षक उदुंबल,
मृत्यु पर तुम्हारे कमजोर पडूँ कैसे?
अश्रुपूरित नयनों से विदा करूँ कैसे?

 वीर शहीदों को हृदय से नमन है-

मैं केशव का पाञ्चजन्य भी गहन मौन में खोया हूँ
उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूँ
जिस माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई
चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई
कुछ बहनों की राखियां जल गई हैं बर्फीली घाटी में
वेदी के गठबन्धन खोये हैं कारगिल की माटी में

पर्वत पर कितने सिन्दूरी सपने दफन हुए होंगे
बीस बसंतों के मधुमासी जीवन हवन हुए होंगे
टूटी चूड़ी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का
कोई मोल नहीं दे सकता वासन्ती जज्बातों का
जो पहले-पहले चुम्बन के बाद लाम पर चला गया
नई दुल्हन की सेज छोड़कर युद्ध-काम पर चला गया

उनको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी
खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी
उन आँखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं
गीली मेंहदी रोई होगी छुपकर घर के कोने में
ताजा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में

जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आँगन में
शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी माँ के दामन में
वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सिर ले सकती है
जो अपने पति की अर्थी को भी कंधा दे सकती है
मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झुकाता हूँ
इसीलिए मैं कविता को हथियार बनाकर गाता हूँ

जिन बेटों ने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
उनकी कोई मांग नहीं है दिल्ली के कानूनों से
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है
उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है
गर्म दहानों पर तोपों के जो सीने अड़ जाते हैं
उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड़ जाते हैं
उनके लिए हिमालय कंधा देने को झुक जाता है
कुछ पल सागर की लहरों का गर्जन रुक जाता है

उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ-जैसा होता है
चित्र शहीदों का मन्दिर की मूरत जैसा होता है।

-हरिओम पंवार


आज की नियमित रचनाएँ-
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माँ
मैं बहुत जल्दी आऊंगा
तब खिलाना
दूध भात
पहना देना गेंदे की माला
पर रोना नहीं
क्योंकि
तुम रोती बहुत हो
सुख में भी
दुःख में भी----



रक्षा अपने देश की, करते वीर जवान।
सेना पर अपनी हमें, होता है अभिमान।।
--
बैरी की हर चाल को, करते जो नाकाम।
सैनिक सीमा पर सहें, बारिश-सरदी-घाम।।
--
सैन्य ठिकाने जब हुए, दुश्मन के बरबाद।
करगिल की निन्यानबे, हमें दिलाता याद।




तुम याद आती हो,

जैसे आते हैं

लू के मौसम में बादल, 

जैसे आती हैं 

सावन के मौसम में फुहारें,

जैसे वसंत में आती है 

बाग़ों में ख़ुश्बू,

जैसे किसी ठूँठ पर 

बैठती है चिड़िया,

जैसे आता है 

सूखी नदी में पानी. 





“समय के पहले से उपस्थित साहित्यकार, राजनीति के नेताओं की असफल प्रतीक्षा करें तो क्रोध कम, क्षोभ ज़्यादा होता है…। जो अर्थ मिला है वह हक़ से मिला है। बैंक हो, सरकारी कार्यालय हो या कोई भी विभाग हो वहाँ साहित्य के लिए ‘धन का पूल’ (फंड) होता ही होता है। उचित पात्र तक ना पहुँचे यह अलग मसला है। उचित पात्र को मिल जाए तो ऋण नहीं हो जाता है! ऋण है तो फिर चुकाना पड़ेगा…! चुकाने का कोई सोचता है क्या?”

और चलते-चलते मेरा प्रिय गीत सुन लीजिए-

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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम अंक
    भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा से जुड़ा
    एक अविस्मरणीय दिन है।
    60 दिन तक चले भारत-पाक युद्ध का अंत
    26 जुलाई 1999 को हुआ।
    कारगिल में शहीद हुये
    सैनिकों के सम्मान और विजयोपहार
    को याद करने के लिए यह दिन
    कारगिल दिवस के रुप में
    सादर
    घोषित किया गया।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ऋण है तो फिर चुकाना पड़ेगा…!
    शानदार अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. भारतीय सैनिकों को समर्पित यह अंक बेहद महत्वपूर्ण और संग्रहणीय है
    सार्थक भूमिका के साधुवाद

    सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई

    मुझे सम्मलित करने का आभार

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार प्रस्तुति. आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. कारगिल दिवस पर अमर शहीदों को समर्पित सार्थक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति । सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय श्वेता, क्षमा प्रार्थी हूँ कि इस अनमोल प्रस्तुति पर आज पहुँच पाई! कारगिल विजय देश के वीर जवानों की एक अनन्य गौरव गाथा है! जिसमें अनेक होनहार जवान अपनी हस्ती को मिटा तिरंगे की शान की नई कहानी लिख गए! 25 साल बीत गए! हुतात्माओं की स्मृति में कृतज्ञ राष्ट्र नत है! वीर जवानों के परिवार देश की अमानत हैं! उनका सम्मान करना हर देशवासी का परम कर्तव्य है!
    वीरों की शान में कुछ पंक्तियाँ मेरी भी---

    तेरी हस्ती रहे सलामत
    कर खुद को कुर्बान चले ,
    तुझे दिया वचन निभा
    तेरे वीर जवान चले !
    हम ना रहेंगे और आयेंगे
    लाल तेरे बहुतेरे माँ
    पड़े ना तुझ पर तम की छाया
    नित लायेंगे नये सवेरे माँ ;
    तेरी खुशियाँ कभी ना हो कम
    कर घर- आँगन वीरान चले
    लिपट तिरंगे में घर आये
    बढ़ा जीवन की शान चले !!!
    🙏🙏💐💐
    शानदार भूमिका और यशस्वी कवि पँवार जी की मर्मांतक रचना के लिए हार्दिक आभार! सभी रचनाकारों को सादर नमन!

    जवाब देंहटाएं

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