आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
ओ सजना बरखा बहार आई
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थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी
जलते तन पर फिर बरस गयी
-श्वेता सिन्हा
गहन दुर्दम निद्रा है मृत्यु
जीवन सा हो मरण भी सुंदर,
अंतर का अवसाद मिटाने
मिला सभी को रहने का घर !
जान लिया हर लक्ष्य जगत का
जो पाना था पाया हमने,
पढ़ ही डाले जितने भी थे
ख़ुशियों और गमों के किस्से !
आकाश का विस्तारजगत जिनमें समाहित,पाए कृपादृष्टि अनुरागबहन सुभद्रा समान ।संग बलभद्र शोभायमान ।रथारुढ़ हुए भगवान ..प्रस्थान गंतव्य की ओर ।
तुम सा न अपना सृष्टि में कोई ,
निशि दिन दरस की नित कामना है ।
मीरा की अविचल लगन ह्रदय में ,
शबरी सी जगी दृढ़ भावना है ।
अप्रतिम अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
सुप्रभात ! बारिश की रिमझिम सा सुंदर गीत, व पठनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक, आभार श्वेता जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंअज़रबैजान का यात्रा वृत्तांत अच्छा जा रहा है और उस देश की यात्रा की इच्छा होने लगी है।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सादर
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक हमेशा की तरह! बधाई और आभार!
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