शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता सुधीर आख्या जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आज की पसंदीदा रचनाएँ-
जितना माद्दा है
तुम में,
अपना निर्णय
सही
साबित करने का।
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उन वीरान से रास्तों की चुप्पी से
लगता है अनजाना सा भय भी
दिल के किसी कोने में
इतने शांत और निर्मल वातावरण में भी
कभी कभी दूर बैठे कौवे की
कांव कांव भी
डरा जाती है भीतर तक
स्वप्न सुनहरे धोखा देकर,जा छिपते जग गलियारों में
तभी विवश हो बैठा मानव,भटक गया उर अंधियारों में
सुख
पाने की आस लगाए,लगा रहा पाखंडी चक्कर
भीडतंत्र का बन कर किस्सा,प्राण गवाए जयकारों में।।
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दाल को अच्छे से धो कर 6-8 घंटे के लिए भिगोकर मिक्सर में थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट
बना लें इसको हाथों से अच्छे से 5 मिनट तक लगातार फैटे । कुछ घंटे ढँककर छोड़ दें जिससे
मिश्रण थोड़ा हल्का हो जाए तब उसमें नमक मीठा सोडा डालकर अच्छे से मिक्स करें और
हथेली में हल्का पानी लगाकर थोड़ा पेस्ट रखें उसमें भरावन भरें तथा गर्म तेल में
मध्यम आँच पर छोटे-छोटे बड़े तल लें। हल्के गर्म पानी में दही बड़ों को डालते जाएं
और आधे घंटे तक भिगोकर रखें। थोड़ा सा दबाकर एक बड़े बर्तन में दही बड़े रखें दही
को छलनी में मैश करके छान लें इसमें दो तीन चम्मच पिसी हुई चीनी मिक्स करें और
बड़ों के ऊपर डाल दें। इसके ऊपर मीठी चटनी हरी चटनीहरा धनिया, भुना जीरा पाउडर, चाट मसाला, नमक, लाल मिर्च, अनारदाना डालें और सबसे ऊपर जैम सजायें
जिस तरह पुष्पा अपने को तपाती रही बिना कोई मंजिल तय किए
चलती रही…, बस! चलती रही, चलती रही! आमदनी की ज़रूरत ही क्या थी!
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति उत्कृष्ट रचनाओं के साथ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंमेरी रचना प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार
व्यक्तिगत और सामाजिक विषयों को जोड़ती रचनाओं का सुन्दर संकलन. मेरी रचना को समक्ष रखने का शुक्रिया.
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