अंधविश्वास में आकंठ डूबी भेड़े
चलती रहती हैं भेड़चाल।
बरगलाकर, भक्ति में डूबे
सरल भेड़ों को
हाथ की सफाई के
भ्रमजाल फैलाता गड़रिया
चालाकी और धूर्तता की छड़ी से
हाँक लेता है अपने
बाड़े में,
झूठे अवतारवाद के
मायाजाल में उलझी
चमत्कार की आशा में
ख़ुश होती हैं भेड़ें
पाखंडी गड़रिया की
चरण-वंदना में,
और गड़रिया उद्धारक बना
भेड़ों को मारकर
खा जाता है...।
#श्वेता
आज की रचनाएँ-
बचपन में उनका गोद में दुलराना
साईकिल पर घुमाना
सिनेमा दिखाना, तारों से बतियाना
अब कुछ नहीं, बस यही चाहते वो
हमेशा उनकी आंखों के सामने रहूं।
मेरा झल्लाना समझते
चुपचाप देखते, कुछ न कहते वो
हम सबकी इच्छाओं,जरूरतों और सवालों को ले
बरसों तक मां सेतु बन पिसती रहीं
धड़कन की चाहे रोक दो रफ्तार
तुम रख लो जिस्म का कतरा कतरा
पर रूह तो लौटा दो यार
और लौटा तो मेरी मुफलिसी
वो अकेलापन और सपने हजार
तुम रख लो मेरी एक एक कौडी
पर वो वक़्त तो लौटा दो यार
मैं पुनः यही कोई आधे घंटे बाद कुछ खाने-पीने का सामान और चाय लेकर आई तब वहाँ का दृश्य पहले से और अधिक रहस्यमई था। अब एक नया थानेदार अर्थात इनसे कहीं अधिक तेज-तर्रार महिला आ चुकी थी उसने जाली के पास कोने वाली एक पूरी बेंच पर कब्ज़ा कर रखा था और जो थोड़ी सीधी-साधी महिलाऐं थीं वो डरी-सहमी सी उससे दूर जाकर जमीन पर लेट गईं या बैठ गईं। वो लड्डू गोपाल वाला परिवार भी थोड़ा और डर गया क्योंकि उनके पास सामान अत्यधिक था जिसकी रखवाली आसान नहीं थी, क्योंकि वह तेजी से उठती कभी पंखा चलाती कभी अपने बेंच के आस-पास लेटी महिलाओं को उठा देती ,कभी जोर से चीखती "रस्ते में मत लेटो,माता रानी कहाँ से आएगी ? कैसे आएगी "कुछ अपशब्द भी बोल दे रही थी।
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बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंनारायण हरि का आतंक
अभी तक जारी है
यही एक अंधविश्वास हम
हमें ले डूबती है..
समझदारों को इशारा काफी है
आभार
सादर
जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. आज की अपनी प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने हेतु .. आज की भूमिका वाली अतुकान्त पंक्तियों का प्रतीकात्मक बिम्ब तथाकथित धार्मिक .. हालिया या प्रायः होने वाली उन्मादी व हिंसक भगदड़ की भर्त्सना कर रही है, पर हमारी अंधभक्ति के गर्भ से कल फिर एक बाबा का जन्म होगा, जिन्हें हम अपने "तन-मन-धन" से पोषित, सुशोभित, पल्लवित, पुष्पित करते-करते अपनी इतिश्री करके बैकुंठ को प्राप्त करने का पुनीत कार्य सम्पन्न करने का काम करेंगे .. शायद ...
जवाब देंहटाएंइस देश में अंधभक्तों की कमी नहीं है दरअसल ये समझ ही नहीं पा रहें हैं कि जीवन कैसे जीना है बस भेड़चाल चलते रहो
जवाब देंहटाएंआज तक कोई बाबा ऐसा नहीं हुआ जो किसी को जीवन की वैतरणी पार करा सके.
धर्म और अंधविश्वास जब आपस में मिल जाते हैं तो यही होता है.
देश में यही हो रहा है.
सचेत करती भूमिका के लिए साधुवाद आपको.
सुंदर संग्रह
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार 🙏 बांकी सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई 💐
जवाब देंहटाएंलोकेष्णा (लोकेषणा) जी की तरह ही मेरे Blog में भी वर्षों से ज्योति खरे Sir की भाषा में कहें तो फफूंद लगा हुआ है। ऐसे में हमें किसी की भी रचना के लिए प्रतिक्रिया देने के लिए URL का सहारा लेना होता है।
जवाब देंहटाएंपरन्तु ज्योति खरे Sir के Blog के अलावा रश्मि शर्मा जी, हरीश पटेल जी और लोकेष्णा जी के Blogs पर "Sign in with google" जैसा terms लिखा होने के कारण URL के सहयोग से भी प्रतिक्रिया देना सम्भव नहीं हो पा रहा है। अतः केवल ज्योति खरे Sir की post पर ही प्रतिक्रिया स्वरुप कुछ बतकही किया हूँ।
विवशतावश इस मंच पर ही कुछ शेष बतकही कर लें ... वैसे तो रश्मि शर्मा जी की रचना पिता-पुत्री या यूँ कहें कि किसी भी युवा होती बेटी और उसके पूरे परिवार के मध्य एक अनबोली ऊहापोह भरी सशंकित सम्बन्धों को उकेरने में सफ़ल है। वहीं हरीश पटेल जी की रचना उनके अपने (सम्भवतः) प्रेम सम्बन्ध में "लूटने" और "लुटने" वाली बातें किसी भी दिलजले युवा को रुलाने की मादा रखती है। लोकेष्णा जी का यात्रा संस्मरण यूँ तो महिलाओं को लक्ष्य करके लिखी गयी हास्यास्पद रचना है, पर .. समस्त इंसानों की भिन्न-भिन्न मानसिक श्रेणियों को बख़ूबी उजागर कर रहा है।
अब चूँकि लोकेष्णा जी की सह यात्री के रूप में आशा शैली (जी) का नाम आया है, तो प्रस्तुति से इतर .. इस मंच और लोकेष्णा जी के माध्यम से .. आशा शैली (जी) से जुड़ा अभी हाल ही का एक संस्मरण साझा करने से स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ और ये बतलाना चाहता हूँ, कि लोकेष्णा जी ने तो कम से कम अपने यात्रा के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर बानगी स्वरुप कुछ महिलाओं का चरित्र चित्रण किया। पर अभी कुछ माह पूर्व ही एक साहित्यिक (?) whatsapp group में, जिसका दुर्भाग्यवश मैं भी उन दिनों सदस्य था, आशा शैली (जी) "बिहारियों" के लिए अपनी एक गलत अवधारणा व्यक्त की थीं। जिसके लिए उस group में उनका छिछा-लेदर भी हुआ था। उनसे सविनय निवेदन है, कि एक-दो या दो-चार मिली बानगी से पूरे राज्य पर ऊँगली उठाने की बात आप जैसी शिष्ट-विशिष्ट महिला को शोभा नहीं देता .. शायद ...
स्वेता जी ! मेरा संस्मरण सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंBanjaarabastikevashinde जी आदरणीय मैं नहीं जानती कि आप "आशा शैली जी " को कितना जानते हैं। हाँ मैं ये जरूर मानती हूँ कि वह, जो उनके जो दिमाग में आता है कह देतीं हैं। मेरी अपनी सोच ये है कि सोशल मीडिया पर हम किसी से बहस या तर्क करके किसी "स्वस्थ समाधान" पर नहीं पहुंच पाते सो किसी के भी बारे में कोई "धारणा" बनाना उचित नहीं लगता। बाकी मतभेद तो मानव स्वभाव है।
अंततः मेरे ब्लॉग पर प्रतिक्रिया ना कर पाने की जो समस्या आ रही थी वो सुलझ गई है। कुछ कुकीज का झमेला था जो अब नहीं है।
हटाएंबेहतरीन अंक।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक। मेरी रचना शामिल करने और सबकी प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद। मुझे भी समझ नहीं आ रहा कि मेरे नाम से कैसे प्रतिक्रिया प्रकाशित हो।
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