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रविवार, 21 जुलाई 2024

4193 ...खुले बदन बारिश में, फिर भीगने की चाहत जागे

 सादर नमस्कार

आज गुरु पूर्णिमा


कल से श्रावण


सबके तन-मन में आग सी लगी है
हर कोई कुछ भी करने- धरने को तैयार
हर मंदिर में सहस्त्रधारा अभिषेक चल रहा है
भीगे वस्त्र में महिलाएं और टॉपलेस पुरुष
बाल्टी भर-भर के जल चढ़ाया जा रहा था
सिंक रही बांटी की महक...
सब प्रतीक्षा में थे कि कब
मंत्रों का समापन हो तो वो सब
भोग लगाएं

अब रचनाओं का आस्वादन करें
****




काश! उसने मुझसे पूछा होता
'तेरी कुड़माई हो गई है ?'
मैं कहती,
"नहीं रे बाबा,
तू करेगा क्या कुड़माई ?



जंगल में सब मस्त है
नहीं पूछता कोई
कौन कौन यहां त्रस्त है।
सभी जानवर प्रतिदिन
नित्य क्रिया में लीन रहते
कुछ जानवर आकर गुफा में विलीन रहते।
शेर कुछ न कुछ नया नियम बनाता
कुछ जानवरों को वो हमेशा डराता।




खुले बदन बारिश में,
फिर भीगने की चाहत जागे,
नदी पहाड़ का खेल है
ज़िन्दगी, उम्र के पीछे भागे,



आदमी
घूमता है
तारा बन

अपने ही
बनाये
सौर मण्डल
में

घूमते घूमते
भूल
जाता है




दुनिया का अंत देखने की चाह में
अनेक चीजों का अंत हुआ
मगर विश्वास सबसे शिखर पर था
तमाम अंत के मध्य।




मूँदे
अपनी
आँखें,
मख़मली
ग़िलाफ़ में
पलकों के,
मिलो ना
कभी हमदोनों,
रहो तुम भी मूक,
घंटों .. रहें हम भी मूक .. बस यूँ ही ...



आज बस इतना ही
सादर

8 टिप्‍पणियां:

  1. गुरु पूर्णिमा पर एक सुंदर अंक प्रिय दीदी! समस्त गुरु सत्ता को कोटि- कोटि प्रणाम! मेरे लिए ब्लॉग पर मेरे साथी मेरे गुरु की भाँति रहे सभी को नमन और आभार! सुशील जी पुरानी कविता उनकी प्रचलित शैली से हटकर लगी! शेष सभी रचनाएँ भी बहुत सुंदर और सार्थक हैं! सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं! आपको भी आभार! अनवरत सेवा का आपसे बड़ा कौन सा उदाहरण हो सकता है! ईश्वर आपकी ये जीवटता बनाये रखे यही दुआ है! 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. जी ! .. सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को मंच देने के लिए ...
    पर हमारे Blog में लोकेष्णा (लोकेषणा) जी की भाषा में लगे फफूँद के कारण कई सारे Comments Spam में चले जाते हैं, जिस कारण से अभी, प्रायः Spam देखने के क्रम में आपके संदेशे को देख पाया ... 🙏

    जवाब देंहटाएं

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