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रविवार, 14 जुलाई 2024

4186 ..मैं पूछती हूँ, बिहार के पुलाें से क्यों गिर जाते हो

 सादर अभिवादन


मैं पूछती हूँ


बिहार के पुलाें से
क्यों गिर जाते हो
पुलों ने कहाः
प्यास लगे तो गिरना पड़ता है
ठेकेदार ने न तो
खाना खिलाया पेट भर
और न ही पानी पिलाया
चातुर्मास है उपवास का चौमासा
पानी ही तो पीना है
सो पानी पीने झुक गया
पेट में कुछ था नहीं
सरिया सीमेंट
वापस उठ नहीं पाया

चलें रचनाओं की ओर



आँसू ..मानो मोती . .
भाव निर्झर
ठिठका हो जैसे,
बहने से पहले
विचार कौंधे..
थाम लिया यदि
भावनाओं का ज्वार,
बन जाएंगे मोती,



वह दौड़ाना चाहती है सर्राटे से
कार भीड़ भरी सड़कों से निकालते हुए
या खुले वाहन विहीन मार्गों पर
(पर ऐसे रास्ते बचे कहाँ है
और प्रदूषण बढ़ाने का
उसे क्या हक़ है ? )




"पत्नी मैडल ले कर मायके चली गयी", यह सहज वाक्य है? सारा 
मीडिया इसे किस्सा क्यों बना रहा है। मीडिया के चेहरे से 
हिन्दू पुरुष वाला गुस्सा क्यों चू रहा है? 
सड़ांध आ रही है इस पसीने से?



ध्वस्त हो रही मर्यादाएं
टूटती जा रही है परंपराएं
भरभराकर गिरते रिश्ते
है बिहार के टूटते पुल पैगाम की तरह ।



मजे की बात देखिए- चॉबी को एक ओर घुमाया तो ताला बंद हो जाता है और 
दूसरी ओर घुमाने से खुल जाता है। इसी प्रकार मन की चॉबी को परमात्मा की 
तरफ घुमाने से हम संसार से खुल जाते हैं और परमात्मा से बंध जाते हैं। 
हमारा मन हमेशा ही अनुकूलता चाहता है, इसे जरा प्रतिकूलता बर्दाश्त नहीं। 
ये हमेशा ही सुख चैन ढूंढ़ता है।


बस
कल फिर
सादर वंदन

1 टिप्पणी:

  1. देर से आने के लिए खेद है, बिहार के पुल दरक रहे हैं, भ्रष्ट कर्मचारियों व अधिकारियों की पोल खोले रहे हैं। सुंदर अंक, आभार !

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