स्नेहिल अभिवादन
-----
मनुष्य को प्रकृति और परमपिता परमेश्वर से
अनेक बहुमूल्य उपहार मिले हैं।
वाणी भी उनमें से एक है
हम मनुष्य अपनी विवेक क्षमता के आधार पर
अपने विचारों के अनुसार
इनका सदुपयोग या दुरुपयोग करते हैं।
बिना यह जाने या समझे कि आपको
सुनने वाला
किस मनोदशा से गुज़र रहा होगा।
काश कि हमारे देश के
भविष्य निर्माता हम प्रजाजन के तथाकथित भाग्य विधाता जो अपनी वैचारिकी स्तर का
परिचय दे जाते हैं
उनको हम उचित दंड दे पाते।
★★★★★
चलिये आज की रचनाएँ पढते हैं-
★
आदरणीया मीना जी
अपनेपन की कीमत देनी,
होती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
साँसों पर अभिलाषाओं के
दाँव लगाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
★★★★★
आदरणीया रश्मि प्रभा जी
अपने अपने हिस्से की ख़ामोशी में,
घर घर ही नहीं रहा,
अनुमानों के सबूत
इकट्ठा हो रहे,
टीन का बड़ा बक्सा भी नहीं
कि भर दूँ अनुमानों से,
यह काम का है,
यह बेकार है ,
सोचते हुए हम सबकुछ बारी बारी
फेंकते जा रहे हैं !
अखबार भी कितने मजबूर हो गए है
ख़बर कुचलकर तारीफ़ की जाती है
अख़बार भी सिकुड़कर बैठ गया है
लगता किसी पे लगाम लगाई जाती है
देश की आझादी के मायने बहुत है
बाहरी नहीं अपनों से पाबंदी लग जाती है
आदरणीय कैलाश शर्मा जी
आती हैं स्वप्न में बन के ज़िंदगी,
दिन होते ही हैं गुम जाती बेटियां।
कहते हैं क्यूँ अमानत हैं और की,
दिल से सुदूर हैं कब जाती बेटियां।
सोचा न था कि होंगे इतने फासले,
हो जाएंगी कब अनजानी बेटियां।
★★★★★★
आदरणीया दीपा जी
निस्पंद उर की
आस वो
बुझते दीपक की
बाती थी
क्यों तोड़ बन्धन
इस क्षितिज के
आज बह चली
उस पार है...
★★★★★
आदरणीया नुपूर जी
फिर भी
कोशिश तो करते ही होंगे सभी
टूटे को जोड़ने की.
कोशिश फिर ये
क्यूँ ना करें ?
स्वप्न हो या दिल कभी
टूटे ही नहीं !
★★★★★
आदरणीया अभिलाषा जी
होने लगा गुणा-भाग।
अनुभव बना खजाना,
अनुभव की रोकड़.!
जिंदगी के पन्नों पर,
बिखरी बेहिसाब!!
बाजार में भी नहीं
मिलता ये,
मांगने से भी नहीं
मिलता ये।
मिलता है जिंदगी के
पन्नों में,
★★★★★★
आदरणीया मालती जी
कलुषित मानसिकता, चारित्रिक पतन और समाज की विद्रूपताओं का आईना है 'प्रदूषण' तो दिल और दिमाग के अन्तर्द्वन्द्व में मानवता और नैतिकता का ह्रास दर्शाती कहानी 'गुनहगार' जो पाठक को झकझोर कर रख देने की क्षमता रखती है।
लेखक ने समाज के हर पहलू को पाठक के समक्ष प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
★★★★★
आज का यह अंक आपको कैसा लगा?
आपसभी के बहुमूल्य सुझाव की
सदैव प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले कल आ रही हैं
विभा दी अपनी विशेष प्रस्तुति लेकर।
आज के लिए आज्ञा दें।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंपरमपिता परमेश्वर से
अनेक बहुमूल्य उपहार मिले हैं।
वाणी भी उनमें से एक है
हम मनुष्य अपनी विवेक क्षमता के आधार पर
अपने विचारों के अनुसार
इनका सदुपयोग या दुरुपयोग करते हैं।
बेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंवाणी वश में रहे तो विध्वंस ना हो
बहुत सुन्दर संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसही मायने में लोकतंत्र में भविष्य निर्माता तो प्रजाजन ही हैं। हम अपने वैचारिक स्तर की गरिमा को लांघकर जाति, धर्म, वाद, पंथ आदि की संकीर्णता में फंस कर अपने ही भाग्य का बंटाधार कर देते हैं। सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपाँचो रचनाएँ अति सुन्दर और सराहनीय हैं।बेटियों का मान और टूटते को जोड़ने का प्रयास से भी मन प्रसन्नता हुआ।
जवाब देंहटाएंदिलबाग जी की कहानियों पर मालती जी की पुस्तक समीक्षा और सारी सामग्री बहुत उम्दा बहुत अच्छा संकलन बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सुंंदर संकलन के साथ अच्छी प्रस्तुति,चयनित रचनाकारों को बधाई। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत संकलन। आभार
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता, आपके द्वारा चयनित सारी उम्दा रचनाएँ पढ़ ली हैं। बहुत सारा स्नेह एवं आभार मेरी रचना को शामिल करने हेतु।
जवाब देंहटाएं