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गाँव,बच्चे और..अमराई...
जनम-जनम का नाता है....
पहले अमराइयों में जमीन पर
पत्थर नहीं मिलते थे..
घर से निकलते समय सड़कों से
बीन कर ले जाते थे...
बस..यादें ही हैं बाकी...
#यशोदा दी
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अमिया, कैरी, टिकोरा,का नाम आते ही जीभ
पर एक खट्टा-मीठा,चटपटा स्वाद भर जाता है न..?
मेरे बचपन की बहुत सारी यादें जुड़ी हैंं
बदलते मौसम की भरी दुपहरी में जब
माँ और घर के सभी बड़े सो रहे होते तो
हम बच्चों का झुंड बहती गर्म पुरवाई के साथ
बेपरवाह आम के बगीचे की चारदीवारी से
झाँक-झाँक कर चौकीदार चाचा की
टोह लेते थे।फिर ढेलों,पत्थरों से
निशानेबाजी की प्रैक्टिस करते
कभी दो-चार टिकोरा हाथ आते ही
सीपियाँ,ब्लेड, छुरी जो हाथ लग जाये उसी
से आड़ा-तिरछा काट बस जीभ पर धरते ही
एक आँख बंद कर अकल्पनीय स्वाद में
डूब जाते थे चाहे उसकी सज़ा
बाद में भुगतनी पड़ती थी।
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चुन-चुन अमिया खट्टी-मीठी
मैं ओढ़नी रखती जाऊँ
पुरवाई संग झूम-झूम
मैं गीत ऋतु के गाऊँ
कूके कोयल नीम डाल
मैं ढूँढूँ उसे बुलाऊँ
मगन सुनूँ हर तान गान
मैं संग-संग दोहराऊँ
भूल दुपहरी धूप लहकती
रुप देख ललचाऊँ
खट्टमिट्ठी अमिया चक्खूँ
मैं सब पकवान भुलाऊँ
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चलिए चखते है आपके द्वारा सृजित
रचनाओं के खट्टे-मीठे का अनूठा स्वाद-
★ आदरणीया साधना वैद जी
अमिया के टिकोरे-सी तुम
कितनी भोली,
कितनी प्यारी,
कितनी सुन्दर हो तुम
बिलकुल अमिया के टिकोरे सी !
खट्टी मीठी, कुरकुरी,
खुशबूदार और ताज़ी !
आदरणीया आशा सक्सेना
कोयल की कुहू कुहू ने
ध्यान मेरा भंग किया
लगा कोई बुला रहा है
बाहर झांका देखा देखती ही रह गई
न जाने कब पेड़ लदा कच्ची केरियों से
अपनी उलझनों से बाहर निकल कर
जब भी झांकती हूँ खिड़की से बाहर
कुछ परिवर्तन होते दीखते हैं अमराई में
कल को आम बौराया था
आज फूलों में फल लगे हैं
मन की आस फिर जग गई
नभ पर अनुगूँज बिखर गई
होले से मदमाता शैशव आया
आम द्रुम सरसई से सरस आया ।
★★★★★
कच्चा आम आ गया है।"
बनारस में था तो जैसे ही घर के समीप सब्जी
मंडी में आम का टिकोरा दिखता था। घर पर
मेरी यह जिद्द शुरु हो जाती थी। भले ही
टिकोरा गुरम्मा ( गुड़म्बा ) बनाने के
उपयुक्त न हो तब भी।
माँ, मम्मी और मौसी तीनों को ही पता था कि मुझे मिठाइयों से भी अधिक प्रिय गुरम्मा लगता है।
हाँ, नियति का यह भी एक
उपहास है कि उसी गुरम्मा के स्वाद को
अब लगभग भूल ही
चुका हूँ। अपनी स्मृति को टटोल रहा हूँ ,
जिह्वा से पूछ रहा हूँ
कि मित्र याद आया कुछ, उस गुरम्मे की मिठास
तो तुझे बहुत पसंद था न ?
मैं भी न .. इस बेचारे को किस धर्मसंकट
में डाल रखा हूँ।
घर- परिवार है कहाँ , जो उसे गुरम्मा का स्वाद
याद रहे। इसे यही समझाने में पिछले वर्ष से लगा हूँ -
★★★★★
आज का यह अंक आपको कैसा लगा?आशा है आपकी रचना आपको ज़रूर पसंद आएगी
प्रतिक्रियाओंं की प्रतीक्षा में
कल मिलिए यशोदा दीदी से
नये विषय को साथ
-श्वेता
व्वाहहहहह सखी वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक...
सादर..
वाह! मुंह को पनिया गया यह चटकार टिकोरा अंक!
जवाब देंहटाएंवाहह..बहुत बढ़िया खट्टी मीठी अमियो से सजी रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
बहुत याद आ रही है आम के अचार की पर क्या करें खाना मना है |
वाहः वाहः बेजोड़
जवाब देंहटाएंचटपटी खटमीठी जी लुभाये
पृथ्वी दिवस की बधाई शुभकामनाओं की आवश्यकता है
पथिक के संस्मरण के साथ आज की प्रस्तुति समापन के लिये धन्यवाद , आभार एवं प्रणाम स्वेता जी।
जवाब देंहटाएंआम की खट्टी -खुशबूदार स्वाद और उनसे बने स्वादिष्ट ब्यन्जनों ने तो मन को खूब लुभाया ।सभी रचनाएँ अति उत्तम।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर हमक़दम का संकलन
जवाब देंहटाएंसादर
वाह ! बहुत ही चटखारेदार खट्टा मीठा संकलन ! आम के कितने तो व्यंजन याद आ गए ! लौंजी, चटनी, अचार, मुरब्बे और उनके स्वाद में ही डूब गया यह मन ! सारी रचनाएं बहुत ही सुन्दर ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंसबके मनभावन खट्टे-मीठे आम के टिकोरों के स्वाद से भरपूर रचनाएं बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआम के टिकोरे सी खट्टी मीठी बहुत ही सुन्दर रचनाओं से सजी लाजवाब प्रस्तुति....।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं...
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर खट्टी मीठी रचनाऐं खट्टी मीठी भुमिका सभी रचनाएं पठनीय अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार ।सस्नेह ।