स्नेहिल अभिवादन
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गुस्सा एक आम जाना पहचाना शब्द है,
दिनभर में जाने कितनी बार छोटी-छोटी बातों
पर आक्रोश में भरकर तड़ से जवाब
दे देना बहुत सामान्य है।
सोशल मीडिया के माध्यम से अपने मन की
भड़ास निकालना और भी आसान हो गया है
जो चाहे जिसे चाहे बस खट-खट
टाईप किया और पोस्ट। चाहे आपके गुस्सा
से किसी और पर कुछ असर हो न हो आपकी सेहत पर कितना असर होता है कभी गौर करियेगा।
गीता का एक श्लोक याद आया आप भी पढ़िये-
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
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चलिये आज की रचनाएँ पढ़ते है-
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आदरणीय विश्वमोहन जी
बागमती की लहरों में मैं,
छंद मोक्ष के लहराता हूँ.
माँ गुह्येश्वरी की गोदी में,
मुक्ति की लोरी गाता हूँ.
मैं प्रकृति का अमर पालना,
पौरुष का मैं उच्छवास हूँ.
खंड-खंड प्रचंड भूकंप से,
नवनिर्माण, अखंड उल्लास हूँ.
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आदरणीय ज्योति खरे जी
फेंक रहे लपेटकर मुफ्त आश्वासन
मनभावन मुद्दों की खुली है दुकान----
देश को लूटने की हो रही साजिश
बैठे गये हैं बंदर बनाकर मचान--
उधेड़ दो चेहरों से मखमली खाल
चितकबरे चेहरे बने न महान--
दिगंबर नासवा
खुशबू, बातें, इश्क़ ... ये कब तक रोकोगे
लोहे की दीवारें, चिलमन झीने पर
छूने से नज़रों के लहू टपकता है
इश्क़ लिखा है क्या सिन्दूर के सीने पर
और वजह क्या होगी ... तुझसे मिलना है
चाँद उतरता है होले से ज़ीने पर
कुछ हम पर था ऐतबार अधूरा
कुछ मगरूरी, कुछ दूरी !
चाह अधूरी, प्यार अधूरा
और मुकम्मल तन्हाई !
लहरों ने मिटा डाले होंगे
सागर के किनारे से सारे निशां,
वो रेत के घर, वो नाम अधूरे
और मुकम्मल तन्हाई !
आदरणीय पुरुषोत्तम जी
गुजरे कई, गुजरी न ये तन्हाई,
सह गई, विरह और जुदाई,
वर्षों मैं तन्हा रही, क्षणभर न ऐसे रह पाओगे!
इक आग में, मैं सदियों जली,
बिना अनुराग, वर्षों पली,
राहगीर हो तुम, छाँव राहतों के न दे पाओगे!
पन्नों से आदरणीय सुशील सर
भगवान के
एजेंटों को
कुछ भी
समझाना
नहीं होता है
मन्दिर
में ही हो पूजा
अब
उतनी
जरूरी
नहीं होती है
★★★★★
हमक़दम का अगला विषय है
आम के टिकोरे,अमिया।
उदाहरण स्वरूप यह रचना
आम के
टिकोरे हैं
कहीं छाँह पेड़ों की ,
पायल से
बात करे
हरी घास मेड़ों की ,
सोया है
चाँद कोई
लेखक: जयकृष्ण राय तुषार
अंतिम तिथिः 20 अप्रैल 2019
प्रकाशन तिथिः 22 अप्रैल 2019
★★★
कल का अंक पढ़ना न भूलें,
कल आ रही हैंं आदरणीया पम्मी जी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।
आज के लिए इतना ही
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति..
सादर...
वाह ¡¡¡
जवाब देंहटाएंक्रोध व्यक्ति का सयाना पन और मति सब छीन लेता है सटीक और सार्थक भूमिका।
सुंदर लिंक संयोजन।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सुंदर प्रस्तुति।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाएं |
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद बहुत अच्छी है |
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
जवाब देंहटाएंस्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
आज का यह उद्धरण, अत्यंत ही सटीक है। आदरणीया श्वेता जी की चार चाँद लगाती इस प्रस्तुति हेतु बधाई ।
सुन्दर सूत्र संयोजन। आभार श्वेता जी 'उलूक' के पन्ने को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएं"क्रोध
जब कभी
मुँह खुलवाता है
आदमी
मुखौटा अपना
हाथ में निकाल कर
असली चेहरा
सामने से ले आता है"
वाहह्हह... सत्य वचन👍👍
हटाएंप्रणाम सर।
बहुत ही सुन्दर संकलन,सभी रचनाएं उत्तम,क्रोध की सुन्दर व्याख्या और विषय
जवाब देंहटाएंभी बड़ा अच्छा चुना है सखी श्वेता।
संडे आयोजन आज की रचनाओं के साथ ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को मान देने के लिए ... शुभकामनाएँ
सार्थक व प्रभावशाली भूमिका...।, सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता ,खूबसूरत प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भूमिका. लेकिन क्रोध के ' इफ़ेक्ट' के साथ-साथ तनिक क्रोध के ' कॉज ' पर भी प्रकाश डाल लें:-
जवाब देंहटाएंध्यायतो विषयांपुंसः, संगः तेषु उपजायते
संगात संजायते कामः,कामात क्रोधो अभिजायते
इसलिए विषय-कामना-आसक्ति के कुचक्र से ही क्यों न मुक्ति पा लें. न रहे बांस, ना बजे बांसुरी.
बहुत आभार सुन्दर संकलन का.
वाह!बहुत सुंंदर संकलन के साथ प्रभावशाली भूमिका।
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
धन्यवाद।
उत्तम प्रस्तुति, सुयोग्य संदेश। गर्मी बढ़ रही है, दिमाग का पारा ना बढ़े।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर सस्नेह धन्यवाद प्रिय श्वेता।
सुन्दर लिंक्स आभार आपका
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं
वाहः
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतीकरण