सादर अभिवादन
कल बीत गया विश्व पृथ्वी दिवस
फिर भी शुभकामनाएँ
आज की प्रस्तुति में हड़बड़ी रही
पर नहीं हुई कोई गड़बड़ी
परेशानी नहीं थी कोई
और यही एक बड़ी परेशानी थी कि
कोई परेशानी नहीं थी
चलिए ..चलें रचनाओं की ओर.....
ज़रा प्यार के साथ
न जाने, कितनी ही बार,
चर्चा का विषय, इक केन्द्र-बिंदु, रहा ये प्यार!
जब भी कहीं, अंकुरित हुई कोमलता,
भीगी, मन की जमीन,
अविरल, आँखों से फूटा इक प्रवाह,
बह चले, दो नैन,
दिन हो या रैन, मन रहे बेचैन,
फिर चर्चाओं में,
केन्द्र-बिंदु बन कर, उभरता है ये प्यार!
स्नेह भी प्यार ही कहलाता है....
स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-
जीवन दह गया है ।"
मां का प्यार भी अजीब ही होता है न
आने वाली पीढियों का
न देख पाएगी
कलकल झरनें ,
बहती नदियां
इसी लिए कह रही हूँ
वक्त है अभी भी
संभल जाओ मेरे बच्चों
आज सुबह मैंने श्रवण कुमार को देखा। उस युवक की मातृभक्ति देख कर मेरा पांव अचानक तेलियागंज तिराहे पर ठिठक गया। मेरे जैसे यतीमों के लिये उस खुशी की अनुभूति कर पाना फिलहाल सम्भव नहीं है और कल्पनाओं में जाकर कुछ लिखने की अपनी आदत नहीं है। पत्रकारिता धर्म ही कुछ ऐसा है कि हम सभी को अमूमन आँखों देखा हाल बताना पड़ता है। फिर भी जब कभी ऐसे दृश्य राह चलते देखने को मिल जाते हैं , तो अपने विरक्त हृदय से कहता हूँ कि मित्र कुछ पल के लिये ही सही दूसरों की खुशियों के साक्षी तुम भी बन जाओ।
कभी कभी आ ही जाता हे रोना
जब प्यार मे कोई कमी रह जाए...
तेरे संग ज़ीने-मरने के
ख्व़ाब सज़ा इन आँखों में
हम रातों को भी न सोए
हम किन आँखों से रोएंँ
आँसुओं में बह अरमां
ग़र हम याद में तेरी रोए
अमलतास की एक खासियत भी है
जब फूल फल बनता है तो फलों की गोलाई देखिए
वो चूहे की पूँछ जितनी मोटी हो तो रैन-कोट और छाते
तलाश लीजिए...बस बरसात शुरू होने ही वाली है
आहट पाकर गर्मी की
एक पेड़ हौले-से शरमाता है
गरम हवा संग अंगड़ाई ले
पत्तियों का दुपट्टा गिराता है
पत्रविहीन शाखों ने पहने
दिव्य वस्त्र अलंकरण खास
किस करघे से काता गया
कुरता पीला,मखमली लिबास
डॉ. भैया की भविष्यवाणी खाली नही जाती
दे साल पहले ही लिख दिए थे कि इस साल ऐसा ही होगा
मेरी एक पते
की बात अगर
तू मान जायेगा
सोनिया, मोदी,
वृंदा या माया दीदी
में से किसी की
छाया भी अगर
कहीं पा जायेगा
तेरा अस्तित्व
उस दिन उभर
कर निखर जायेगा
कौड़ी का भाव
जो आज है तेरा
करोड़ों के मोल
का हो जायेगा
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अब आती है बारी
साप्ताहिक विषय की
अड़सठवाँ विषय
वेदना
उदाहरण.....
भीगे एकांत में बरबस -
पुकार लेती हूँ तुम्हे
सौंप अपनी वेदना -
सब भार दे देती हूँ तुम्हे !
जब -तब हो जाती हूँ विचलित
कहीं खो ना दूँ तुम्हे
क्या रहेगा जिन्दगी में
जो हार देती हूँ तुम्हे !
अंतिम तिथि -27 अप्रैल 2019
प्रकाश्य तिथि- 29 अप्रैल 2019
प्यार को परिभाषित करता बहुत ही "प्यारा" अंक।
जवाब देंहटाएंसही कहा स्नेह ही कालांतर में विभिन्न प्रकार के प्रेम का सृजन करता है।
पथिक के लेख को स्थान देने के लिये यशोदा दी आपका हृदय से आभार,प्रणाम।
इस प्यारे से अंक में हमारा प्यार भी समाहित करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद । शुभप्रभात ।
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहह...
जवाब देंहटाएंप्यारा अंक...
सादर..
वाहः गज़ब
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
सुन्दर हलचल प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंअरे वाह्ह्ह्ह दी..आज की प्रस्तुति रचनाओं के साथ आपकी प्रतिक्रिया खास बना रही...बहुत सुंदर..👌
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत अच्छी है मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार दी।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं
शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
बहुत सार्थक अंक आदरनीय यशोदा दीदी | सभी लिंक सराहनीय | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनायें | आपको भी हार्दिक बधाई और आभार |
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