स्नेहिल अभिवादन
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चुनावी बाज़ार में
सपनों के सौदागर
वायदों की चाश्ननी में लिपटे
मीठे सपने बेच रहे हैंं।
कुछ जागते लोग
उनींदें अधखुली आँखों को
जब़रन खोले रतजगे कर
चाश्ननी की कड़ुवाहट
जाँच रहे हैंं
कोई न सोने की कसम खाकर
सपनों की हक़ीकत माप रहा है
कोई सोने का उपक्रम कर
सौदागर के मंसूबे नाप रहा है
कोई सौदागरों के सपनों
को क़ीमत के मुताबिक
छाप रहा है
इन सबसे परे
कुछ मासूम,कुछ मजबूर
अब भी वायदों की फटी चद्दर में
अपना मुक़द्दर भरकर
सपनों की तुरपाई कर
सुख भरे दिन की आस लिये
अपनी ख़्वाहिश को काछ रहे हैंं।
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आइये अब आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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मिलिये
आदरणीय सुबोध सर से
एक्स-रे तो एक्स-रे ठहरा, है ना ज़नाब !?
अन्दर की ठठरियों की तस्वीर खिंच लेता है ये
ये तो फिर भी तन का उभार है,जिसे टटोलते हैं
अक्सर टपोरी इन्हीं एक्स-रे वाली बेंधती नज़रों से
और कुछ सज्जन भी, अन्तर केवल इतना कि
टपोरी बेहया की तरह अपनी पूरी गर्दन घुमाते हैं
360 डिग्री तक आवश्यकतानुसार और ये तथाकथित सज्जन 180 डिग्री तक हीं अपनी आँखों की पुतलियों को घुमाकर चला लेते है काम
डर जो है कि - ' लोग क्या कहेंगें '।
★★★★
आदरणीय अमित निश्छल जी
चंद्र मगर आकांक्षी था,
यही चाँद की गलती थी
चंदा ओपाकांक्षी था;
हेम फुहारे, रजनी भर
धरती हर्षित हो जाती,
किंतु मेघ को यह सहमति
फूटी आँख नहीं भाती।
कीमत सारी, संबंधों की, कमजोरी को भरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
★★★★★★
आदरणीय रवींद्र जी
पूछा मुझसे-
ये नक़्शे टेढ़े-मेढ़े क्यों होते हैं ?
बड़े होकर समझना
नक़्शों का बदलना
नक़्शों का मिटना
नक़्शों में समायी भावना
नक़्शों में सिमटी दुनिया
★★★★★
आदरणीया साधना जी
लेकिन इन सबसे अलग
यह जो स्वर्ण कलश है
इसमें संगृहित हैं तुम्हारे आँसू
जो मेरे लिए सबसे अनमोल हैं
क्योंकि उन आँसुओं में
मुझे सदैव अपनी पीड़ा के
प्रतिबिम्ब के स्थान पर
तुम्हारी पीड़ा का प्रतिबिम्ब
दिखाई दिया है
वो बहे हैं तो सिर्फ मेरे लिए
नितांत विशुद्ध प्रेमवश
इसीलिये वो सबसे विशिष्ट हैं !
★★★★★
आदरणीय लोकेश जी
सांस लेना भी हो गया मुश्किल
खेल समझे थे लगाना दिल का।।
कैसे करते न नाम पर तेरे
मुस्कुराहट या कि बयाना दिल का।।
थक गई है उनींदे रस्तों से
नींद को दे दो न शाना दिल का।।
★★★★
और चलते -चलते
आदरणीया नुपूर जी
अनुभा की प्रतिक्रिया उस लड़के के लिए पूर्णतः अनपेक्षित थी। वह भौंचक्का रह गया था । उसकी सारी मस्ती काफ़ूर हो गयी थी । वही हाल उसके साथ वाले लड़कों का भी था । अनुभा ने धक्का दे कर उस लड़के को बेंच पर बैठा दिया और उस पर अपनी पकड़ ढीली ना करते हुए, बेंच पर उसके पास बैठ गयी ।
★★★★★★
आज की यह प्रस्तुति आपको
कैसी लगी?
आपसभी की बहुमूल्य
प्रतिक्रियाओंं की
सदैव प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले,
कल आ रही हैं विभा दी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ
शुभ प्रभात सखी..
जवाब देंहटाएंशानदार पंक्तियों से आगाज..
गर्मी बढ़ गई है..रायपुर में
सांस लेना भी हो गया मुश्किल
बेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
वाहः
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
वाह! वाकई शानदार!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अप्रतिम रचनाएं आज की हलचल में ! मुझे स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचनाओं का संकलन, सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंगुलदस्ते में आपने
किसिम किसिम के
फूल सजाए,
मनभाये ।
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
जवाब देंहटाएंअमित निश्छल जी, यह बात बहुत अच्छी लगी ।
एक दूसरे के पूरक हैं, अंधेरा और रोशनी । हरेक का अपना महत्व और सौंदर्य है ।
सुंदर और सार्थक संकलन। सभी को बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं
शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन।
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