सादर अभिवादन
आज श्वेता जी नहीं है
हम हैं आज धर्मचर्चा हेतु
हम धार्मिक नहीं हैं पर
अधार्मिक भी नहीं हैं
धर्म का मर्म कौन जान पाया
जो एक लाचार वृद्ध को सड़क
पार करवा दे वही धर्म है
हम ज्यादा तर्क नहीं दे सकते
एक छोटी की कथा
सच्चा धर्म
सिक्ख बोला, तुम जमीन क्यों बेच रहे हो ?
गरीब बोला, बेटी की शादी करना है
इसीलिए मज़बूरी में बेचना है.
पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं ?
सिक्ख बोला, मुझे जमीन खरीदनी है,
किसी की मजबूरी नहीं. अगर आपकी
जमीन की कीमत मुझे मालूम है तो
मुझे आपकी मजबूरी का फायदा
नहीं उठाना, मेरा वाहेगुरू
कभी खुश नहीं होगा.
ऐसी जमीन या कोई भी साधन, जो किसी की मजबूरियों को देख के खरीदा जाये वो
जिंदगी में सुख नहीं देता, आने वाली
पीढ़ी मिट जाती है.
सिक्ख ने कहा: मेरे मित्र, तुम खुशी खुशी,
अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो, 50 हजार की व्यवस्था हम गांव वाले मिलकर कर लेंगे,
तेरी जमीन भी तेरी ही रहेगी.
मेरे गुरु नानक देव साहिब ने भी अपनी
बानी में यही हुक्म दिया है.
गरीब हाथ जोड़कर नीर भरी आँखों के
साथ दुआयें देता चला गया।
ऐसा जीवन हम भी बना सकते हैं.
बस किसी की मजबूरी न खरीदें, किसी के दर्द,
मजबूरी को समझ कर, सहयोग करना ही
सच्चा तीर्थ है, एक यज्ञ है.
सच्चा कर्म और बन्दगी है.
प्रस्तुत है आपकी लिखी रचनाएँ
आपके समक्ष....
सखी मीना शर्मा
धर्म चिड़िया का,
खुशी के गीत गाना !
धर्म नदिया का,
तृषा सबकी बुझाना ।
धर्म दीपक का,
हवाओं से ना डरना !
धर्म चंदा का,
सभी का ताप हरना ।।
माननीय व्याकुल पथिक
हो ऐब कितने भी तुझमें
पर फ़रेब तो ना कर
इंसानियत को बना मज़हब
धर्म के मर्म को समझ
किताबों में ना ढूंढ इसे
है मोहब्बत ही इक मज़हब
सखी कामिनी सिन्हा
धर्म क्या हैं ? धर्म क्यों हैं ?धर्म कैसा होना चाहिए ? क्या सचमुच हमारे जीवन में धर्म की आवश्यकता हैं? धर्म का हमारे जीवन में क्या महत्व होना चाहिए ?मानव का सबसे बड़ा या पहला धर्म क्या होना चाहिए ? धर्म के बारे में ना जाने इस तरह के कितने सवाल हमारे मन मस्तिष्क में उठते रहते है।हर युग में,हर समाज में ,हर सम्प्रदाय में यहां तक की हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से इन सवाल के खोज में लगा रहता हैं। धर्म के संबंध में बड़ी विभिन्ताएं देखने को मिलती हैं। एक देश और एक ही जाति के लोगो के धार्मिक आचरण में भी
बड़ा अंतर दिखाई देता हैं।
बच्चों को भूखा रख दुखिया माँ मंदिर में अर्चन करती ,
विवश विकलता एक पिता की तेरी देहरी पर सिर धरती ,
क्यों दुःख नहीं बाँटते उनका, बोलो तुम किसका भय है ,
वार नहीं क्यों देते यह धन उर अंतर जो करुण, सदय है ,
लेकिन ऐसा तभी करोगे मन पर पीड़ा से कातर हो !
सचमुच तुम केवल पत्थर हो !
दरअसल इस मायाजाल का आरम्भ होता है प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले और लुभावनी बातों से लोगों को सम्मोहित कर लेने की क्षमता रखने वाले ढोंगियों की सत्संग सभाओं से जो अक्सर शुरू तो होती हैं किसी पार्क के कोने या छोटे मोटे मंदिर के प्रांगण से लेकिन जब भीड़ बढ़ने लगती है तो इन धर्म सभाओं के लिए बड़े बड़े हॉल या पंडालों की व्यवस्था भी होने लगती है ! उनमें दान पात्र भी आ जाते हैं और धन भी जमा होने लगता है ! एक अच्छे व्यापारी की तरह इस धन का निवेश ये गुरुघंटाल बाबा लोग बड़ी चतुराई से करते हैं ! पहले सत्संग के बाद कुछ प्रसाद, फिर चार छ: महीने में एकाध बार किसी बड़े गुरु के नाम का भंडारा
दीदी साधना वैद
आस्था की बात है ! अपने धर्म का अपनी इच्छा के अनुसार पालन करने का बुनियादी अधिकार हमारे देश के संविधान ने हर भारतवासी को बड़ी उदारता के साथ दिया है ! शायद इसीलिये प्रभु प्रेम की यह धारा अविरल निर्बाध बहती ही जाती है ! देश के हर हिस्से, हर शहर, हर मोहल्ले, हर गली, हर घर, हर कोने, हर दीवार, हर आले में किसी न किसी रूप में भगवान मिल जायेंगे ! फिर चाहे वे मूर्ति के रूप में हों, तस्वीर के रूप में हों, फोटो के रूप में हों या फिर कलेंडर पर छपे हों !
धर्म उपदेशक धर्म की व्याख्या मनमानी करते है
और ईश्वर की प्रशंसा करते नही थकते
लेकिन उनको मेरा सुझाव है कि
धर्म को कर्म से मिलाये
और धर्म को धर्म ही बनाये रखने की कोशिश करे
न कि व्यवसाय !
आह्वान करेगा जन्म भूमि का कर्ज चुकाने का
मां की रक्षा हित फिर देवी शक्ति रूप धरना होगा
केशव संग पार्थ बनना होगा ,
अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध
लड़ना होगा।
मालूम न था
किस धर्म में पैदा हुए
माली ने गुलदस्ता बनाया
रंग बिरंगे पुष्पों से सजाया
मानो विभिन्न परिधान में लिपटे
लोग खड़े हों एक समूह में
कोई खुद को हिन्दू कहता
कोई अपने को मुस्लिम बताता
कोई रूप सिक्ख का धरता
कोई बौद्ध धर्म अपनाता
धर्म ,बोलता कर्म की वाणी,
धर्म नहीं कोई कथा-कहानी।
सृष्टि के हर कण में बसे हैं,
जड़-जगंम सब में निखरे है।
बहती हवा दे सबको जीवन,
पानी दे सबको संजीवन।
प्रकृति के जीवों का रक्षण,
धर्म मनुष्य का कर्तव्य-पालन ।
अपनों के बीच अपने लिए
लड़ रहा ज़िंदा रहने के लिए
भूल गए इंसानियत का धर्म
बने आज एक दूसरे के दुश्मन
हाँ मैं धर्म हूँ बेबस खड़ा
ना कोई माना ना कोई मानेगा
एकता थी वजूद मेरा
बटा हुआ हूँ आज टुकड़ों में
मैं धर्म हूँ
शाश्वत
पदार्थ में सार्वभौमिक
मानव धर्म सार्वभौमिकता
हुआ न कभी बदलाव मुझ में
फ़िर भी तलाश रहा हूँ अपना अस्तित्व
ख़ोज रहा हूँ पहचान अपनी
धारण किया मैंने कर्म को
माननीय डॉ. सुशील जोशी
इन सब कतार
बनाने वालों की
रिश्तेदारियाँ
कभी जात
हो जाती है
कभी इलाका
हो जाता है
कभी धर्म
हो जाता है
मजे की बात है
कभी कभी सकर्म
हो जाता है
कतार बनाने वाले
पहचानते हैं
कौन सबसे अच्छी
कतार बनाता है
नया विषय देखिएगा
कल के अंक में
-यशोदा
जी यशोदा दी
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा कि मानवीय भाव ही धर्म है। किसी की मजबूरी का लाभ नहीं उठाये और संवेदनशील हो इंसानियत यही है।
अन्यथा नौ दिंन उपवास करें और फिर मुर्गा हलाल करें।
ऐसे भी धर्म कर्म वाले हैं,इसी धरती पर।
दया ही धर्म का मूल तत्व है। इससे करुणा और प्रेम विकसित होता है।
तब हम अपनी हंसी ठहाके वाली दुनिया से बाहर निकल दूसरों की पीड़ा समझ पाते हैं।
पथिक की रचना को स्थान देने के लिये आपका हृदय से आभार।
व्वाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्याख्या धर्म की
सादर..
प्रणाम
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं"किसी की मजबूरी न खरीदें, किसी के दर्द,
जवाब देंहटाएंमजबूरी को समझ कर, सहयोग करना ही
सच्चा तीर्थ है, एक यज्ञ है.
सच्चा कर्म और बन्दगी है ।"
वाह...., जीव धर्म की सम्पूर्णता का सार ।
सभी सूत्र अत्यन्त सुन्दर ।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
Bahut shandar ank
जवाब देंहटाएंधर्म पर अपने कोमल मन की श्रेष्ठ व्याख्या कर बहुत शानदार प्रस्तुति सखी जी ।
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन।
कथा माध्यम से सहज सुंदर व्याख्या धर्म की साथ ही शानदार लिंकों का चयन ।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
सभी रचनाकारों को बधाई।
आज तो बहुत कुछ ले कर आयी हैं यशोदा जी। आभारी है 'उलूक' के पन्ने पर नजरे इनायत के लिये।
जवाब देंहटाएंमाननीया यशोदा दादाजी ने धर्म की व्याख्या बहुत ही सुंदर व सहज ढंग सवारकर किया है। किसी की मजबूरी समझना ही मानव का सच्चा धर्म । जो इस मर्मस्पर्शी को समझ गया। वो सच्चा अर्थों में धर्म को समझ ग़या ।समस्त रचनाओं धर्म की बेहतरीन व्याख्या हुई है। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमाननीया यशोदा दादाजी ने धर्म की व्याख्या बहुत ही सुंदर व सहज ढंग सवारकर किया है। किसी की मजबूरी समझना ही मानव का सच्चा धर्म । जो इस मर्मस्पर्शी को समझ गया। वो सच्चा अर्थों में धर्म को समझ ग़या ।समस्त रचनाओं धर्म की बेहतरीन व्याख्या हुई है। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमाननीया यशोदा दीदीजी.. नमस्कार
जवाब देंहटाएंआज के हमकदम के इस अंक में बहुत ही शानदार सूत्रों का समावेश ! सच्चे धर्म की यही परिभाषा है कि दूसरे की मजबूरी का फ़ायदा कभी नहीं उठाना चाहिए ! यह कभी धर्म हो ही नहीं सकता ! आपने बहुत ही सटीक कथा को आधार बना कर बहुत बढ़िया व्याख्या की है धर्म की ! मेरी रचनाओं को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! मेरा स्नेहिल अभिवादन स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,धर्म पर अच्छी चर्चा रही ,मेरे लेख को स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद। आदरणीय यशोदा दी ,क्षमा चाहती हूँ ,शायद गलती से मेरे लेख पर माननिये व्याकुल पथिक जी का नाम अंकित हो गया है। आप को सूचित करना मैंने आवश्यक समझा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर हमक़दम की प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आदरणीय दी जी
सादर
Lajwab prastuti
जवाब देंहटाएंवेहतरीन संकलन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका सहृदय आभार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंधर्म की विस्तृत वर्णन सटीक व्याख्या,सभी
जवाब देंहटाएंलिंक्स अति सुन्दर,वास्तव में धर्म को बेड़ियों में जकड़ा हुआ है अपने-अपने हिसाब से
धर्म को अपनाने की परंपरा बना ली गई है
जिसमें धर्म का वास्तविक अर्थ लोप हो गया है। सहृदय आभार यशोदा जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबचपन से ही घर में पड़ी पुस्तकों को खंगालने की आदत रही। इसी क्रम में माँ की धार्मिक पुस्तकों के बीच एक पुस्तक हाथ लगी - नारी धर्म शिक्षा। दस वर्ष की उम्र में 'धर्म' शब्द से यह मेरा पहला परिचय था। आगे स्कूल में फॉर्म भरते समय धर्म और जाति से परिचय बढ़ा। धर्म के नाम पर होने वाले दंगों की खबरें पढ़ते तो मन कहता कि ये धर्म किसने बनाए ? माँ की बातों में स्त्री के धर्म की चर्चा रहती थी। पुरुष के धर्म की चर्चा कभी नहीं सुनी। धर्म का एक अर्थ 'कर्तव्य' भी होता है, यह धीरे धीरे पता चला। मुझे तो लगता है कि धर्म शब्द पहले 'कर्तव्य' के लिए ही प्रयुक्त होता होगा। स्वार्थसिद्धी के लिए लोगों ने इसके मायने ही बदल दिए।
जवाब देंहटाएंधर्म पर अनेक दृष्टिकोण सामने आए हैं आज की रचनाओं में। विविधतापूर्ण संकलन है। मेरी रचना को शामिल करने के लिए सादर आभार।
वाह....बहुत ही प्रेरणादायक कहानी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
लाजवाब रचनाएं
रचनाकारों को हार्दिक बधाई
सच्चे धर्म को परिभाषित किया है आप सभी ने
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना..
सही मायने में धर्म यही है !
मुझे यहां स्थान देने के लिए आभार आदरणीया
सादर
बहुत सुन्दर संकलन |धर्म पर अलग अलग विचार बहुत सही लगे |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
शानदार प्रस्तुतिकरण एक से बढकर एक धर्म संकलन..।
जवाब देंहटाएंरंग बिरंगे फूलों की तरह आज का संकलन
जवाब देंहटाएं