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गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

1357....सब होशियार... पिटारा खुल गया....

सादर अभिवादन। 

है 
नाम 
ग़ाएब 
मतदाता
चुनाव आया 
सब होशियार
पिटारा खुल गया।  
आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें -



मृगनयनी चंचल चपल 
 हैं नैन बड़े  विशाल 
 तेरे
पैनी उनकी धार से  जब करते कटाक्ष
हृदय विदीर्ण हो जाता |




कुछ जगहों पर हमेशा किसी का पाया जाना
वहां उसका रहना नहीं है  
मैं बार-बार वहीं चला जाता हूं 
जहां रहना चाहता हूं 
भले ही कोई मुझे किसी बस स्टैंड पर खड़ा देखे या
किसी बहुमंजिली इमारत की
एक छोटी कोठरी में दूसरे का दिया हुआ काम करते  



साथ जिंदगी का निभाया हमने
दुखों  को  ही साथी  बनाते रहे
...
प्रीत मांगी थी सजन तुमसे कभी
आंसुओं  से  नेह  बरसाते  रहे



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 तपती  देह कराहता मरु 
      मुस्कुराते छाले 
    आओ  प्रिय !
           शुष्क मरु पर भाव सरिताएं उलीचें 



कुछ दिनों से पैदल चलने का मन हो रहा है. यह सड़कों से मेरे रिश्ते की बात है. बिना पैदल चले शहरों से रिश्ता नहीं बनता. बिना नंगे पाँव चले घास से रिश्ता नहीं बनता, बिना दूर जाए करीबी से रिश्ता नहीं बनता. बिना जार- जार रोये सुख से रिश्ता नहीं बनता. लकीरों का यह टूटकर गिरना सुखद है. 


हम-क़दम का नया विषय

यहाँ देखिए


रवीन्द्र सिंह यादव

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ
    सुन्दर आगाज..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. पिरामिड जोड़ा रहे.. एक होने से अधूरा
    सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छा संकलन, विशेष आभार संजय कुंदन जी की कविताएँ पढ़वाने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा पठनीय लिंक संकलन... शानदार प्रस्तुतिकरण...।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
    शानदार रचनाएँ, मुझे स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचनाओं के संकलन,सभी रचनाकारों को बधाई।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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