प्रणामाशीष
नाहीं जीवन होई आगे दुखदायी बबुआ ।
पढ़ लिख लेबौ तौ ज्ञान बढ़ जाई ,
चाहे जहाँ रहीबो सम्मान बढ़ जाई ।
होई शिक्षा से सबकै भलाई बबुआ ,
नाहीं जीवन होई आगे दुखदायी बबुआ
दुःखियों के दुःख दर्द हरोगे।।
जनता क्षमा नहीं करती है।
सच्चे पर सब कुछ हरती है।।
मत लग जाना तुम इतराने।
सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखों वाला और हुआ
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ
माता रही विचार अंधेरा हरने वाला और हुआ
दादा रहे निहार सवेरा करने वाला और हुआ
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ
क्या हुआ. मारो मत बच्चा है.
माताराम, अभी तो हाथ भी नहीं लगाया. हम मार नहीं रहे. सिर्फ पूछने में इतना चिल्ला रहा है.
दीदी, भाभी आदि से आंटीजी, माताराम में हुए प्रमोशन की पीड़ा बच्चों के रोने के आगे गौण थी. माताओं को बीच बचाव करते देख पड़ोसी के लॉन में झुरमुट में छिपी दो लड़कियां भी हाथ जोड़े मेरे सामने आ खड़ी हुईं. वे भी लगातार चीख कर रोती जाती थी.
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पुन: मिलेंगे...
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आज का विषय
विषय क्रमांक 103
चोट
उदाहरण
लगी है चोट जो दिल पर बता नहीं सकते
ये वो कसक है जो कहकर सुना नहीं सकते
तुम्हारे प्यार को भूलें तो भूल जायें हम
तुम्हारी याद को दिल से भुला नहीं सकते
रचनाकार स्मृतिशेष गुलाब खंण्डेलवाल
प्रविष्ठियां आज शनिवार दिनांक 11 जनवरी 2020 को
शाम तीन बजे तक ही स्वीकार्य
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
सदा की तरह शानदार..
आभार...
सादर...
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ है दी हमेशा की तरह सराहनीय संकलन दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंक।
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