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सोमवार, 5 मई 2025

4479 ....छीज रही साँसों की पूंजी कुछ तो सोच-विचार करो।।

 सादर अभिवादन


कुछ सोच .....

बीत गया बचपन तो सारा
लाड-प्यार-मनुहारों में।
यौवन के आते ही मन
फँस बैठा विषय-विकारों में।।
वृद्धावस्था में आकर रोगों
ने तन को घेर लिया।
मंजिल कैसे मिल पाती,
जब पथ से ही मुँह फेर लिया।।
सत्कर्मों की नाव बनाकर,
भवसागर को पार करो।
छीज रही साँसों की पूंजी
कुछ तो सोच-विचार करो।।


होते हैं रचनाओं से रूबरू




सब व्यर्थ हुए उपक्रम
किये जो हमने
तुम्हारे लिए
 
तुम नहीं आये तो
किया द्वार बंद
तुम्हारे लिए !




तुम ढूंढो मुझे गोपाल मैं खोई गैया तेरी
सुध लो मोरी गोपाल मैं खोई गैया तेरी







पर्वतों की
घाटियों में
एक सुन्दर झील है,
सोचिए मत
ज़िन्दगी की
राह कितने मील है,
पाँव तो
चलते रहेंगे
धूप में जलते हुए.






 महावृष्टि चलि फूट कियारी। जिमि स्वतंत्र होई विगरहि नारी।"

अर्थात जैसे भारी बारिश से खेतों की क्यारियाँ फूट जाती हैं, उसी तरह से स्वतंत्र होने पर स्त्रियाँ बिगड़ जाती हैं. सही साबित कर रही है आज की नारी महर्षि तुलसीदास जी की उक्त पँक्तियाँ, नहीं सम्भाल पा रही है आज की नारी स्वयं को मिली हुई यह स्वतंत्रता. आधुनिकता का ज्वर इस कदर हावी है कि आज फ़िल्मों और मॉडलिंग में लगी हुई महिलाओं को तो छोड़ दीजिए, गृहणी कही जाने वाली नारी के शरीर से भी वस्त्र धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं, कहाँ महिलाओं के शरीर पर पहने वस्त्रों के ऊपर दुपट्टा, दुशाला एक शान हुआ करता था, एक पहचान हुआ करता था उसके सभ्य, सुसंस्कृत परिवार की बेटी या बहू होने की, किन्तु आज केवल उसके पुरातन होने की, बहनजी होने की उपाधि मात्र रह गए हैं जिसे कोई भी आधुनिक महिला सुनना नहीं चाहती.






हमने दीपक लिया खड़ी बालू पर गिरते फिसलते नीचे उतरे तेज हवा को हथेलियों से रोकते दीपक बाला और गंगा माँ को प्रणाम करके अपने बच्चों की खुशियों की कामना करते हुए उसे प्रवाहित कर दिया। दूर तक वह दीपक लहरों के साथ आगे बढ़ता रहा हम उसे देखते रहे चकित होते रहे। यह दीपक की जिजीविषा थी या माँ का प्यार जो हिचकोले खाते उस दीपक को संभाले हुए था ताकि वह अपनी शक्ति भर उजियारा करे और जीवंत रहे। चूँकि पहला दीपक हमारा था जो नजरों से ओझल होने तक टिमटिमा रहा था उसे देखते हम अग्नि और पानी की इस जुगलबंदी को उनकी एक दूसरे के प्रति सदाशयता को देख चमत्कृत थे।
अंधेरा हो चुका था इसलिए सभी ऊपर आ गये।


*****
आज बस
सादर वंदन

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! सुन्दर सूत्र ! सार्थक हलचल ! मेरी पोस्ट को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका दिल से धन्यवाद एवं आभार दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !

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