शीर्षक पंक्ति: आदरणीया शुभा मेहता जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
अब देखो न...
प्रकृति प्रदत्त चीजें ,
जो मिली हैं उपहार स्वरूप
अलग-अलग गुणधर्म लिए
अब मिर्ची कम तीखी चाहिए
मीठे फलों में नमक मिर्च लगाएंगे
बेचारे करेले को तो नमक लगाकर कर
इस कदर निचोड लेते है
कि बेचारा आठ-आठ आँसू रो लेता है
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शायरी | लोग बदले हैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
लोग बदले हैं मौसमों की तरह।
औ' हम करते रहे ख़ुद से ज़िरह।
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किसे सुनाएँ इस दुनिया में
हम दर्द अपना कोई भी नहीं
इस जहां में हमदर्द अपना
गिरता है जहाँ पसीना अपना
पहन मुखौटे नेता यहां पर
सियासत करने आ जाते हैं
हमारे पेट की अग्नि पर
रोटियाँ अपनी सेकते हैं
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बहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविन्द्र जी मेरी रचना यहाँ ,पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए , शीर्षक पंक्ति में शामिल करनें हेतु दिल से धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर, मेरी दो दो पोस्ट को चर्चा में स्थान देने के लिए 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसर मेरा एक ब्लॉग कानूनी ज्ञान (http://shalinikaushikadvocate.blogspot.com) भी है कभी उसे भी चर्चा में स्थान दीजिए क्योंकि आज के समय में जो पोस्ट मैं उस पर शेयर कर रही हूँ उन्हें लेकर जनता को जानकारी होना जरूरी है.
हमेशा की तरह मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏