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शनिवार, 3 मई 2025

4477...अब मिर्ची कम तीखी चाहिए...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया शुभा मेहता जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

फितरत

अब देखो न...

प्रकृति प्रदत्त चीजें ,

जो मिली हैं उपहार स्वरूप

अलग-अलग गुणधर्म लिए

अब मिर्ची कम तीखी चाहिए

मीठे फलों में नमक मिर्च लगाएंगे

बेचारे करेले को तो नमक लगाकर कर

इस कदर निचोड लेते है

कि बेचारा आठ-आठ आँसू रो लेता है

*****

शायरी लोग बदले हैं डॉ (सुश्री) शरद सिंह

लोग  बदले हैं  मौसमों की तरह।

हम करते रहे ख़ुद से ज़िरह।

*****

श्रम दिवस

किसे सुनाएँ इस दुनिया में

हम दर्द अपना कोई भी नहीं

इस जहां में हमदर्द अपना

गिरता है जहाँ पसीना अपना

पहन मुखौटे नेता यहां पर

सियासत करने आ जाते हैं

हमारे पेट की अग्नि पर

रोटियाँ अपनी सेकते हैं

*****

हिन्दू संस्कार-हिमानी नरवाल

ये होती है एक हिन्दू की सोच- इस छोटी सी बच्ची ने एक मुस्लिम के हाथों बिना किसी रंजिश केबिना किसी तकरार के अपने दिन पहले पति हुए विनय नरवाल का खून बहते देखा और उसके बाद भी ये इतनी बड़ी बात दिल से कह गईये श्री राम की भक्ति की शक्ति ही है जो हर हिन्दू को यह ताकत प्रदान करती है कि वह अपने कड़े से कड़े दुश्मन को भी माफ कर सके. भगवान इस बेटी को यह गहरा दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें और कभी भी किसी भी बेटी के साथ ये अन्याय न करें - जय श्री राम जय हनुमान

*****

लडकियों में बढ़ती मर्दानगी 

हमारे प्राचीन संस्कारों में ये शामिल था कि कँगना बंधने के बाद दूल्हा या दुल्हन वैवाहिक गतिविधि के लिए ही घर से बाहर निकलते थे जिनमे दूल्हे का तो फिर भी ये था कि वह घुड़चढी के लिए घर से निकलता था किंतु दुल्हन कँगना बंधने के बाद केवल शादी के धार्मिक संस्कार पूरे होने पर घर से विदा होने के लिए ही घर से निकलती थी अन्यथा नहींकिन्तु आज कल एक नया प्रचलन शुरू हो गया है दुल्हन के ब्यूटी पार्लर में तैयार होने का और इसके लिए दुल्हन अपनी एक सहेली या बहन भाई के साथ ब्यूटी पार्लर पर आती है और दुल्हन के रूप में तैयार होकर कार या ई रिक्शा से वापस लौटती हैकई बार तभी ब्यूटी पार्लर के बराबर की दुकान से दुल्हन के रूप में तैयार होकर सामान खरीदने लगती है और कभी कभी दुल्हन के रूप में ही ब्यूटी पार्लर से फुर्र हो जाती है. दुल्हन के रूप में तैयार होने की शर्म का तो अब कहीं नामों निशान ही नहीं रह गया है. इस सब का असर विवाहों के टूटने से लेकर उसके आपराधिक अंत के रूप में नजर आ रहा है किन्तु आधुनिकता में डूब रहा समाज या फिर आज की आधुनिक नारी की कोई सोच इस ओर ध्यान देती नहीं दिखाई देती है. 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविन्द्र जी मेरी रचना यहाँ ,पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए , शीर्षक पंक्ति में शामिल करनें हेतु दिल से धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर, मेरी दो दो पोस्ट को चर्चा में स्थान देने के लिए 🙏🙏
    सर मेरा एक ब्लॉग कानूनी ज्ञान (http://shalinikaushikadvocate.blogspot.com) भी है कभी उसे भी चर्चा में स्थान दीजिए क्योंकि आज के समय में जो पोस्ट मैं उस पर शेयर कर रही हूँ उन्हें लेकर जनता को जानकारी होना जरूरी है.
    हमेशा की तरह मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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