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गुरुवार, 15 मई 2025

4489...स्वतंत्रता का अर्थ खुली छूट नहीं होती है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कविता रावत जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

आइए पढ़ते हैं ब्लॉगर.कॉम पर प्रकाशित पसंदीदा रचनाएँ- 

 कल मातृदिवस था

माँ – चाबी रख लीऔर धूप का चश्मा?

मैं – हाँये भी रख लिए.

माँ - और अपना मोबाइल?

मैं – वो भी रख लिया.

माँ – अपनी वाटर बॉटल ज़रूर साथ ले जाना.

*****

बंदी राजा बनने से आजाद पंछी बनना भला

बंदी  राजा  बनने से आजाद पंछी बनना भला
जेल के मेवे-मिठाई से रूखा-सूखा भोजन भला

स्वतंत्रता का अर्थ खुली छूट नहीं होती है
अत्यधिक स्वतंत्रता सबकुछ चौपट करती है

*****

1462

खाने के लाले  हैं घर में, खैरात माँग इतराते हैं।

धर्म नहीं है उनको प्यारा, नफ़रत, हिंसा प्यारी हैं।

अपनी कौमों के माथे पर लिखते वे गद्दारी हैं 

दहशतगर्दी फैलाना हीधर्म जिन्होंने माना है

इंसानी जानों की कीमतउनको क्या समझाना है।

*****

“स्मृति-मंजूषा”

मगर कहते हैं ना कि "साँझ के सूरज को देख पाखी भी अपने आप को समेट नीड़ की तरफ लौटने लगते हैं।वैसे ही मेरे  मन में भी ख्याल आया कि अपने लिखे को समेट कर पुस्तक के रूप में साकार करने का समय आ गया है। अपने पढ़ने की किताबों की आलमारी में अपने लिखे का भी स्थान तो बनता ही है,  इसी सोच के साथ अपने ब्लॉग मंथनकी पिटारी से रचनाओं  के मोती चुन कर  अपनी डिजिटल  डायरी में संकलित कर उसको  13 जुलाई 2019 को पोस्ट अपनी एक कविता के शीर्षक पर नाम दिया स्मृति-मंजूषा”!!  अप्रकाशित संकलन के बाद भी काफी काम थे जिससे  प्रूफ़ रीडिंग और प्रकाशन से संबंधित काम जिसको तय करना समय ले रहा था ।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

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