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शुक्रवार, 16 मई 2025

4490 ....गमले में लगा पौधा बन गया हूं

 सादर अभिवादन

4 टिप्‍पणियां:

  1. "कुछ सोच .....
    कुछ सोच के कहां लिखते है हम,
    अपनी भावना को छंदों में पिरोते हैं हम।
    दिल जब रोता है, जुबां जब बंद हो जाती हैं,
    तो शब्दों की मोती पिरोते हैं हम।"

    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ ।
    "महफ़ूज़ " जोङने के लिए शुक्रिया । सभी रचनाएँ पढ़ीं। गहन अनुभूति और सकारात्मक एवं तटस्थ विश्लेषण पठनीय है । सभी को बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  2. दिग्विजय जी, धन्यवाद। सुबह-सुबह सजा हुआ गुलदस्ता सामने आ जाए तो इससे अच्छा श्रीगणेश क्या हो सकता है ! पर धीरे-धीरे पढ़ने वाले ना के बराबर हो गए हैं । लिखने वाले भी अन्यत्र व्यस्त हो गए हैं । क्या दिन पूरे हो गए इस मंच के ? दुखद है । परन्तु आप अंधङ में मचान संभाले हुए हैं । आपका और आप जैसे गिनती के और लेखन प्रेमी बागडोर थामे हुए हैं..हार्दिक आभार...सिलसिला बना रहे ।

    जवाब देंहटाएं

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