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मंगलवार, 27 मई 2025

4501.... युद्ध में सिर्फ़ वे ही नहीं मरते मरती है भाषा की देह

मेरे समस्त स्नेही पाठक वृंद
 और ब्लॉगर साथियों का
 सादर और सप्रेम अभिवादन।
अचानक पाँच लिंकों से प्रस्तुति का सस्नेह आमंत्रण मिला, सो हाजिर हूँ।
कल ही युद्ध पर  ' प्रदीप त्रिपाठी'  जी की एक कविता पढ़ी।


युद्ध महज़ युद्ध नहीं होते
युद्ध में सूख जाती हैं
नदियों की आत्मा
पहाड़ों का जिस्म
रत्ती भर
सपनों का समुद्र भी।
युद्ध में सिर्फ़ वे ही नहीं मरते
मरती है भाषा की देह
और इस तरह
मर जाती है
पूरी की पूरी सभ्यता।
**  **  **  **

युद्ध पर बहुत कुछ लिखा गया।  इसके विरोध में कवियों ने आर्त रचनाएँ लिखी। मानवाधिकार कार्य कर्ताओं ने आंदोलन किये। हिंसा के विरोध में अहिंसक धर्म- संप्रदाय बने। पर सबके समानांतर  कभी धर्म कभी सत्ता के नाम पर युद्ध  सदैव चलता रहा। यदि युद्ध  तनिक थमा तो अराजक  तत्व सक्रिय हो  शांत लोगों की नाक में दम करने लगे। अंततः निचोड़ यही कि शांति के लिए युद्ध  जरूरी है। इसके परिणामों की भयावहता से कौन वाक़िफ़ नही। बहरहाल आज का समय भी युद्ध का समय है। उसे भूल प्रेम  और सौहार्द की बात करें। क्योंकि प्रेम रत  व्यक्ति कभी युद्ध का पथ नही अपनाता।
******

आज की विशेष रचना
प्रथम रचना  ब्लॉग चिड़िया से 
जिसमें अंतिम विदा में कातर हृदय का हृदय विदारक प्रश्न है

डाल से, टूटकर गिरता हुआ

फूल कातर हो उठा।
क्यूँ भला, साथ इतना ही मिला ?
कह रहा बगिया को अपनी अलविदा,
पूछता है शाख से वह अनमना -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"

*****
दूसरी रचना ब्लॉग' मन के पाखी 'से। 
जिसमें प्रकृति से एक विकल कवि हृदय की क्षमा याचना है


इन दिनों सोचने लगी हूँ
एक दिन मेरे कर्मों का हिसाब करती
प्रकृति ने पूछा कि-महामारी के भयावह समय में
तुम्हें बचाये रखा मैंने
तुमने हृदयविदारक, करूण पुकारों,साँसों के लिए
तड़प-तड़पकर मरते
बेबसों जरूरतमंदों की क्या सहायता की?


****
तीसरी रचना ब्लॉग' 'पुरवाई' से
कभी कोई सुखती, सुबकती नदी के मन को भी तो पढ़े।
आखिर वो कौन है जो उसके भीतर उतरकर
उसे पढ़ पाता है सिवाय एक कवि के

नदी

अंदर से जानी नहीं गई
केवल
सतही तौर पर देखी गई।
उसकी भीतरी हलचल
का कोई साझीदार नहीं है


प्रेम के पर्याय हैं श्री कृष्ण ।
श्री कृष्ण के प्रेम की भव्यता को दर्शाता
सखी कामिनी का एक भावपूर्ण लेख उनके
ब्लॉग "मेरी नज़र से' से

प्रेम और करुणा के पर्याय है " कृष्णा " 

जिन्होंने बताया "जिसके हृदय में प्रेम के साथ करुणा का भी वास है
सही अर्थ में वही सच्चा धर्माचार्य है,
वही सच्चा भक्त है, वही सच्चा प्रेमी है।


अंत में   प्रेम की सर्वोच्चता को इंगित करती एक हृदयस्पर्शी  रचना
'अमृता तन्मय' जी के ब्लॉग से



लागे है मुझ को बड़ा आन सखी !
उसको मत कहना तू पाषाण सखी !   
इस मंदिर का है वही भगवान सखी ! 
उससे ही तो है मेरा ये प्राण सखी !

शेष फिर...
-रेणु बाला 

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! अत्यंत मनोरम संकलन। हार्दिक बधाई और आभार इस शानदार प्रस्तुति की🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय विश्व मोहन जी सादर आभार आपका🙏

      हटाएं
  2. बहुत सुंदर सार्थक रचनाओं को समेटे एक सारगर्भित अंक के लिए धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सप्रेम आभार और अभिनंदन प्रिय प्रिया जी🙏

      हटाएं
  3. क्या बात है सखी, आज कई महीनों बाद तुम्हारे भेजे हुए लिंक को देखकर जैसे मैं नींद से जागी हूं और याद आया कि मेरी एक ये दुनिया भी थी, बहुत बहुत धन्यवाद सखी,आज तो नहीं कल सारे ब्लाग पर जाकर रचनाओं का आनंद भी उठाऊंगी और प्रतिक्रिया भी दुंगी। सभी संगी साथियों को मेरा सादर अभिवादन 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. सखी तुमने आकर मनोबल को बढ़ाया, मुझे अच्छा लगा। हार्दिक स्नेह और अभिनंदन सखी 💕❤

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय रेणु,
    मैं तो भूल ही गई थी कि मेरे ब्लॉग पर यह रचना है.
    आपने इस लिंक को ना भेजा होता तो पता भी नहीं चलता. जीवन के उतार चढ़ाव में हमसे सबसे पहले हमारे शौक ही छीने जाते हैं.
    आपने बहुत अच्छी रचनाएँ चुनी हैं . बहुत सुंदर अंक बना है.
    बहुत सारा स्नेह और आभार प्रिय बहन.

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय मीना, यहाँ आकर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार। सच है ब्लॉग की तरफ मोड़ने के लिए भाई दिग्विजय जी ने अतुल्य प्रयास किया। ब्लॉग के शुरुआत के दिन कितने सुहाने थे। सच है जीवन की परेशानियों में हम सबसे पहले अपने शौक की बलि दे देते हैं। पर हमें एक बार फिर से अपने सृजन के संसार में लौटना होगा। आप भी अपने कर्तव्य का निर्वहन कर जरूर ब्लॉग की तरफ आओ। और इस प्रस्तुति को आकर्षक और मोहक हमारी रूप में सजाने और संवारने का श्रेय प्रिय श्वेता को जाता है। सब कुछ व्यवस्थित करने के लिए उसके लिए मेरा स्नेहाशीष बस। आभार तो बहुत छोटा शब्द है। और पांच लिंक मंच को स्नेह वंदन।

    जवाब देंहटाएं

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