।।प्रातःवंदन।।
" स्वागत एवं अभिनन्दन करते सब हैं
इस नये विहान का
धन्य हो तुम रश्मियाँ जो आई हो
लेकर जीवन इस भू पर
नयी चेतना के साथ।
ये मेरे प्रभात के मधुर क्षण में
इस विश्व को प्रेम, शांति और आनन्द
के अवसर दे सकें
शुभकामनाओं के साथ !"
परंतप मिश्र
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण में शामिल रचनाए...
चीजें जैसी हैं, वैसी हैं
हम उन्हें खींच कर
बनाना चाहते हैं
जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं
यही खिंचाव तो तनाव है
तनाव भर देता है मन को..
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मिटाया था तूने सुखी-चैनों का सिंदूर,
अब तू भी मिट यही नीति यही दस्तूर,
ज़ो हमें छेड़ता है उसे छोड़ते नहीं मगरूर,
बिखरेगा तू, होगा खंड-खंड, चूर-चूर।..
✨️
सच ही कहते हैं .....
हम इंसानों की बडी अजीब -सी
फितरत है ........
जो होता है , संतोष नहीं
जो नहीं है ,बस भागे चले जाते हैं
उसके पीछे ..
चैन ,सुकून सब खो बैठते हैं
बस होड़ा-होड़ .....।
अब देखो न...
✨️
तुम तक कोई नहीं पहुँच पायेगा
जो तुम नजदीक आते लोगो से
दूर भाग जाते हो वो
तुमको सच में बहुत दूर ले जायेगा
तरसते रह जाओगे किसी की आहट को..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सुप्रभात ! हर नयी भोर एक नया संदेश लेकर आती है, सुंदर भूमिका और पठनीय रचनाओं का संकलन, 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु आभार पम्मी जी !
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