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शुक्रवार, 23 मई 2025

4497 ना आगे का कुछ सोच सकूं , ना पीछे का मुझे याद रहे,

 सादर अभिवादन

कुछ सोच .....



न याद रहे गुजरा वो कल
न याद रहे बिखरा वो पल
उस लम्हो को बस भूल पाऊं
मुझको ऐसा जीवन देना
ना आगे का कुछ सोच सकूं ,
ना पीछे का मुझे याद रहे,
बस आज को जी भर जी पाऊँ,
मुझको ऐसा जीवन देना ........

देखें कुछ रचनाएं


उन्हें पेड़ पौधे लगाने का शौक था सामने रातरानी जाइंट लिली और भी कुछ पेड़ पौधे लगे थे जो वहीं छूट गये। जाइंट लिली में साल में एक बार फूल आयेगा यह वे बता गये थे।

आज पैंतालीस सालों बाद भी उनका छोड़ा जाइंट लिली फूलता है और उनकी याद दिला देता है। आज वे कहाँ हैं पता नहीं लेकिन उनकी उपस्थिति उस घर में बनी है। एक पौधा इतने साल आपकी उपस्थिति बता सकता है इसलिए पेड़ लगाना चाहिए वे हमारे बाद भी हमारी याद दिलाते रहेंगे।





The world doesn’t know what to do with India.
We don’t fit their neat little boxes. We’re not white.
We’re not monotheistic.
We’re not ex-colonizers or submissive ex-colonized.
We are something they can’t decode.

We are too many things at once—ancient and modern, spiritual and scientific, emotional and logical.
We believe in gods and particles, karma and quantum.
We’re chaos that somehow moves forward.
That bothers them.
*****भारत!!!!!!!
दुनिया को नहीं पता कि भारत के साथ क्या करना है।
हम उनके साफ-सुथरे छोटे-छोटे बक्सों में फिट नहीं बैठते। हम गोरे नहीं हैं।
हम एकेश्वरवादी नहीं हैं।
हम पूर्व उपनिवेशवादी या विनम्र पूर्व औपनिवेशिक नहीं हैं।
हम कुछ ऐसे हैं जिन्हें वे डिकोड नहीं कर सकते।
हम एक साथ बहुत सी चीजें हैं - प्राचीन और आधुनिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, भावनात्मक और तार्किक।
हम देवताओं और कणों, कर्म और क्वांटम में विश्वास करते हैं।
हम अराजकता हैं जो किसी तरह आगे बढ़ती है।
यह उन्हें परेशान करता है।





स्त्री अपना स्वाभिमान रौंद देती है
उस घर की ख़ातिर
जिसे मकान से घर बनाते हुए
उसने हज़ारों बार सुना ….
“निकल जाओ मेरे घर से “

अपने बच्चों के किए
घर में शांति बनाये रखने के लिए
गिर जाती है कितनी ही बार
अपनी ही नज़रों में,






सूख गए हरित-पीत पत्ते,
कुम्हलाए कोमल किसलय
मुरझा गए सुकोमल सुमनालय
व्याकुलता बढ़ती रही छाल की  
काया क्षीण हुई विशाल वृक्ष की
वक़्त का क्या गया
बस स्मृतियों का ख़ज़ाना बढ़ गया
एक वार्षिक वलय और बढ़ गया




आसमान साफ़ नीला है,
हवा मद्धम बहती है,
बस इसीलिए
यहाँ बादलों की आवाजाही लगी रहती है,
ये रूई के नर्म फाहे से बादल,
इस कैनवास पर चित्रों सरीखे दृश्य रचते हैं,
मैं देखती हूँ, मुग्ध होती हूँ,



****
आज बस
सादर वंदन

2 टिप्‍पणियां:

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