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रविवार, 4 मई 2025

4478 ...दुश्मन के सीने पर चढ़कर हुंकार भरो,

 सादर अभिवादन


कुछ सोच .....
उसे तुम अस्त-व्यस्त कर रहे।
तुम्हारी इस घिनौनी हरकत से
वह नाले में तब्दील हो रही।
लहराती, इठलाती, मचलती हुई
इसकी प्रभा दिन-प्रतिदिन क्षीण-मलिन हो रही
तुम अपनी तमाम ओछी हरकतों से
उसे छल रहे-मिटा रहे हो
उसके अस्तित्व, उसके वजूद को तोड़-मसल रहे।
लेकिन सावधान! नदी का अस्तित्व तुम्हारे जीवन का प्राणवायु है


होते हैं रचनाओं से रूबरू




उलझ गई थी
आज़ादी के वक्त
समस्या वह सुलझाने वाली है
एक मुल्क
जो झूठ की बुनियाद पर
खड़ा हुआ  
चूलें उसकी हिलने वाली हैं
छल से लिया बलूचिस्तान






दुश्मन के
सीने पर
चढ़कर हुंकार भरो,
राक्षस
वध करना है
नृसिंह अवतार धरो,
जयकार
तिरंगे की हो
इस दुनिया जहान में.





समाप्त होने से पहले
वे विलुप्त होंगे
विलुप्त होने के दौरान
उनके लिए बनाई जाएंगी
नीतियाँ
उनके लिए मनाया जाएगा
कोई एक दिवस
उस दिन बड़े अधिकारी, मंत्री आदि
देंगे बड़े बड़े भाषण
और फिर फुर्र हो जाएंगे !





तुम मेरे अनाड़ीपन पर खिलखिलाना,
मैं मुस्कुराऊंगा तुम्हारी खिलखिलाहट पर,
कुछ तो असर होगा इसका खाने पर,
बेकार नहीं जाती कभी इतनी मुस्कुराहट।



*****
आज बस
सादर वंदन

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! नदियों को नाले में बदलते हुए देखना अति पीड़ादायक है ऐसे ही हवा को ज़हरीली बनते, [पर सबसे कठिन है सहना आतंक को, हर बेबसी को त्याग अब हर भारतवासी के जगने का वक्त आया है , सुंदर अंक, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं

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